Saturday, 6 December 2014

बाबासाहेब के महापरिनिर्वाण दिवस को ही बाबरी विध्वंस के लिए क्यों      चुना संघ परिवार के हिंदुत्व ब्रिगेड ने?

बाबासाहेब के परानिर्वाण दिवस पर बाबासाहेब की कर्मभूमि मुंबई के चैत्यभूमि में श्रद्धांजलि देने के लिए शिवाजी पार्क पर शिवशक्ति में निष्णात भीमशक्ति के लाखों चेहरों पर यकीनन इस प्रश्न का कोई उत्तर नहीं लिखा होगा।
6 दिसंबर को देशभर में बाबरी विध्वंस की बरसी का जश्न और मातम मनाने वाले परस्पर विरोधी भारत देश के आम नागरिकों के सर दर्द का सबब भी नहीं है यह सवाल और न देश विदेश में बाबा साहेब की स्मृति में भाव विह्वल बाबा साहेब के करोड़ों अनुयायियों भक्तों के लिए इस सवाल का कोई महत्व है।
इस सवाल पर गौर करने से पहले इस सूचना पर गौर करें कि संसद के शीतकालीन सत्र में गैर जरूरी करार दिये गये नब्वे कानूनों को एक मुश्त खत्म कर दिये गये विपक्ष की गैरमौजूदगी में, बिना बहस बिल पास हो गया है। जैसा बाकी सारे कायदे कानून बदलने या बिगाड़ने के लिए होता रहा है और होता रहेगा।
इस निरसन और संशोधन (दूसरा) विधेयक का कोई ब्यौरा लेकिन उपलब्ध नहीं है।
गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने 90 पुराने और अप्रासंगिक कानूनों को खत्म करने के लिए निरसन एवं संशोधन (दूसरा) विधेयक 2014 संसद में पेश किया। कानून मंत्री डीवी सदानंद गौड़ा ने कहा कि “बहुत सारे कानून अप्रासंगिक हो गए हैं। ये भ्रम की स्थिति पैदा करते हैं। सरकार शासन और प्रशासन में सुधार करने और इसे सरल बनाने के लिए प्रतिबद्ध है। इस वजह से ऐसे कानूनों को खत्म करना जरूरी हो गया है।’
संसदीय कार्यमंत्री एम. वेंकैया नायडू ने कहा कि सदन में कांग्रेस समेत विपक्ष मौजूद नहीं है। एकतरफा बहस के दौरान भाजपा की मीनाक्षी लेखी ने कहा कि 1998 में एक समिति बनी थी। उसने 1382 कानूनों को समाप्त करने की सिफारिश की थी। लेकिन इस दिशा में काम काफी धीमे-धीमे हुआ।
नरेन्द्र मोदी सरकार द्वारा शीतकालीन सत्र में रखे गये इस संबंधी विधेयक में अभी 36 पुराने पड़ चुके कानूनों को शामिल किया गया है। आने वाले समय में सरकार की योजना ऐसे 300 कानूनों को खत्म करने की है। सदन में भी कोई यह नहीं जानता था कि सड़क पर पड़े 10 रुपये के नोट को बटुए में रखने और बिना इजाजत पतंग उड़ाने से जेल हो सकती है। ये और इस तरह के कई कानून देश पर बोझ बने हुए हैं। इनमें से कई कानून तो ब्रिटिश शासन के समय से चले आ रहे हैं।
सिर्फ एक गैर जरूरी कानून का हवाला देकर धकाधक एकमुश्त 1382 कानूनों को समाप्त कर दिया गया है और हम नागरिकों को मालूम भी नहीं हैं कि कौन कौन से कानून खत्म किये जा रहे हैं और उनसे राजकाज में क्या सरलता आने है और किसके लिए सरलता आने वाली है।
संसद में हमारे किसी जनप्रतिनिधि ने इन खत्म होने वाले कानूनों का ब्यौरा नहीं मांगा है। बहरहाल सरकार की तरफ से कहा जा रहा है कि इन कानूनों को खत्म करने से न्यायिक प्रक्रिया तेज हो जायेगी और फालतू मुकदमे खत्म हो जायेंगे।
हम नही जानते कि ये फालतू मुकदमे किनके खिलाफ हैं और किनकी सहूलियत और किनकी सुविधा वास्ते ये कानून खत्म किये जा रहे हैं।
नवउदारवाद की संतानों को और उनके राजकाज को कारपोरेट हितों के अलावा किसी और चीज की परवाह हैऐसा सबूत पिछले तेईस सालों से नहीं मिला है।
समझ में आनी चाहिए लंबित जो परियोजनाएं हैं और उनमें जो देशी विदेशी पूंजी फंसी हैं, उनके सामूहहिक कल्याण के लिए ही ये कानून खत्म किये जा रहे हैं।
हम सहमत हैं कि अगर मुख्यमंत्री बाहैसियत बंगाल की मुख्यमंत्री को अपशब्द कहने की स्वतंत्रता है तो बाकी लोगों को भी होनी चाहिए।
राजनीति जो सिरे से अभद्र और अश्लील हो गयी है, उसकी वजह धर्मोन्मादी ध्रुवीकरण के जरिये सत्ता समीकरण साधकर कारपोरेट सत्ता की बागडोर पर कब्जा करना है और रंग बिरंगी राजनीति के तमाम क्षत्रप और सिपाही खुलकर भाषा का दुरुपयोग कर रहे हैं।
इसकी आड़ में संसदीय कार्यवाही के बहिष्कार के बहाने एकमुश्त 1382 कानून खत्म करने की जो नूरा कुश्ती तमाशा है, वही आज का लोकतंत्र है और बार बार सत्ता बदलाव के लिए गठजोड़ और सत्ता समीकरण बनाने बिगाड़ने के खेल से कुछ बदलने वाला नहीं है। हर्गिज नहीं बदलने वाला है। पानी सर के ऊपर बहने लगा है, दोस्तों।
बाबासाहेब के परानिर्वाण दिवस पर इस बात को समझने की खास जरुरत है कि संघ परिवार बिना किसी योजना केबिना किसी योजना के सिर्फ शुभमुहूर्त के हिसाब से अपने एक्शन की तारीख तय नहीं करता।
समझने वाली बात यह है कि केंद्र में पहली भाजपाई सत्ता समय में और उससे भी पहले इंदिरा गांधी की तानाशाही के खिलाफ सत्ता में आये गैरकांग्रेसी अमेरिका परस्त सत्तासमूह के संघी तत्वों ने इजराइल भारत, ग्लोबल हिंदुत्व और ग्लोबल जायनी गठजोड़ की नींव रखी और भारत इजराइल संबंध का पहला पड़ाव, इस्लाम के खिलाफ तेलयुद्ध सह आतंक के विरुद्ध अमेरिका के महायुद्ध, मुक्त बाजार के अश्वमेध राजसूय के लिए हिंदू साम्राज्यवाद का पुनरू्थान अमेरिकी इजराइली हित और अबाध विदेशी पूंजी के लिए अनिवार्य धर्मोन्मदी राष्ट्रवाद के लिए योजनाबद्ध कारपोरेट केसरिया एजेण्डा रहा है बाबरी विध्वंस का यहमानवता विरोधी युद्ध अपराध
कांग्रेस और संघ परिवार के चोली दामन के साथ के रसायन को समझे बिनानेहरु के हिंदू साम्राज्यवाद को समझे बिना समाजवादी माडल के इंदिरा गाधी के गरीबी उन्मूलन के देवरस फार्मूले को समझे बिना इस नवउदारवादी वैदिकी मनुस्मृति सभ्यता को समझना आसान नहीं है।
धर्मोन्मदी केसरिया कारपोरेट राज के लिए सबसे जरुरी यह था कि बहुसंख्य भारतीय कृषि आजीविका, देशज उत्पादन प्रणाली से जुड़े बहुसंख्य बहिष्कृत वंचित जनसमुदायों की पूरी विरासत और उनके इतिहास भूगोल, उनकी मातृभाषा, उनके लोक, उनके प्रतीकों को खत्म करना जो एकमुश्त संभव हो सका बाबरी विध्वंस में बाबासाहेब के परानिर्वाण दिवस को समाहित करने से।
दलितों, आदिवासियों, किसानों, ओबीसी समुदायों, असुरक्षित शरणार्थियों, मुसलमान समेत तमाम धार्मिक और भाषायी अल्पसंख्यकों के गेरुआकरण का प्रस्थानबिंदु है यह छह दिसबंर का बाबरी विध्वंस तो यह अरबपति करोड़पति सत्ता वर्चस्वी नवधनाढ्य उत्तरआधुनिक मनुस्मृति वर्णशंकर सत्ता वर्ग का जन्म रहस्य भी है।
जिसे समूचे एशिया को युद्ध भूमि में तब्दील करके, नरसंहार संस्कृति के तहत प्रकृति और मनुष्यता के सर्वनाश के एजेण्डा के तहत पूरा किया गया सक्रिय कांग्रेसी साझेदारी के साथ अंजाम दिया संघ परिवार ने।
समझने वाली बात है कि भोपाल गैस त्रासदी हो, या सिखों का नरसंहार या देशव्यापी दंगों का षड्यंत्र, या बाबरी विध्वंस हो या आरक्षण विरोधी आंदोलन या फिर गुजरात नरसंहार राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय सत्ता समीकरण का इतिहास भूगोल को समझे बिना हम समझ ही नहीं सकते कि इन घटनाओं को अंजाम देने वाले अभियुक्तों के अलावा सरगने शातिराना दिलोदिमाग और भी हैं।
मानवता के विरुद्ध अपराधी उन युद्धअपराधी षड्यंत्रकारियों को, सरगाना, माफिया गिरोहों को कटघरे में खड़ा करके बांग्लादेश के युद्ध अपराधियों की तरह एक ही रस्सी में फांसी दिये बिना मुक्तबाजारी यह कयामत कभी थमने वाली नहीं है।
जिसके लिए वैज्ञानिक चेतना के साथ बहुसंख्य भारतीय कृषिजीवी प्रकृति और पर्यावरण के संरक्षक समूहों की व्यापक एकता के लिए अपने असली इतिहास को समझे बिना और बाबा साहेब की विरासत को वैज्ञानिक चेतना से लैस किये बिना भावनाओं की राजनीति का अंजाम फिर वहीं केसरिया पैदल फौजे हैं जो हम हैं।
जो चैत्यभूमि में लाखों की तादाद में जमा जनसमूह भी है। और करोड़ों अंध भक्त और अनुयायी बाबासाहेब के भी हैं जिसकी वजह से हमारे तमाम राम हनुमान हुए जाते हैं।
नवउदारवाद की उच्च तकनीक वाले राजवीगाधी ने इसका शुभारंभ राममंदिर का ताला खुलवाकर किया तो नवउदारवाद के मसीहा नरसिंह राव और डॉ. मनमोहन सिंह के राजकाज के तहत संघ परिवार ने पूरे तालमेल के साथ इस जघन्य कृत्य को अंजाम दिया जो भारत में गृहयुद्ध युद्ध के वैश्विकि सौदागरों का मुक्त बाजार और अमेरिका और इजराइल के नेतृत्व में नागरिकता, नागरिक मनवाधिकार, प्रकृति और पर्यावरण, जल जंगल, जमीन आजीविका के हक हकूक से वंचित करने के पारमाणविक डिजिटल बायोमेट्रिक रोबोटिक आटोमेशन बंदोबस्त की बुनियाद है।
संघ परिवार रके बाबरी विध्वंस एजेण्डे के तहत ही इजराइल के साथ भारतीय सत्ता तबके की प्रेमपिंगे तेज होती रही है और हमारी आंतरिक सुरक्षा अब अमेरिका इजराइल, मोसाद एफबीआई और सीआईए के हवाले हैं तो हमारी अर्थव्यवस्था और हमारा यह लोकतंत्र एकमुश्त अमेरिकी इजराइली उपनिवेश है, जो अब जापान के साथ भी साझा हो रहा है और इसी के साथ आकार ले रहा है ग्लोबल हिंदू साम्राज्यवाद का रेशमपथ।
समझने की जरूरत है कि यरूशलम के अल अक्श मसजिद के दखल के ड्रेस रिहर्सल बतौर बाबरी विध्वंस की योजना बनीं और उसकी पृष्ठभूमि भी तैयार की स्वंभू धर्मनिरपेक्ष कांग्रेस ने बाबरी मस्जिद का ताला खुलवाकर।
उससे भी पहले संघ कांग्रेस गठजोड़ ने मिलकर सिखों के नरसंहार मार्फते हिंदुत्व के पुनरूत्थान को अंजाम दे दिया। वह अल अक्स मंदिर भी अब तालाबंद है और उसे भी किसी भी दिन ध्वस्त कर देगा इजराइल।
जैसे अयोध्या मथुरा वाराणसी के एजेण्डे के मध्य ही थमा नहीं रहेगा बाबरी विध्वंस का अशवमेधी घोड़ा, लाल किले पर भागवत गीता महोत्सव के आयोजन और क्रिसमस दिवस पर अटल बिहारी वाजपेयी के जन्मदिन को पटेल के जन्मदिन को एकता दिवस मनाने की तर्ज पर सुशासन दिवस बतौर मनाने के आयोजन और ऩई दिल्ली में ही गिरजाघर में आगजनी वागदात के माध्यम से समझा दिया है निरंकुश केसरिया कारपोरेट मुक्तबाजारी निरंकुश सत्ता ने, जिसमें समूची अरबपति करोड़पति रंग बिरंगी राजनीति निष्णात है ।
धर्म निरपेक्षता तो एक मौकापरस्त सत्ता समीकरण है या फिर अस्मिता केंद्रित वोट बैंक समीकरण जिसके कितने और उपकरण और कितने और संस्करण उपस्थित हों मुक्तबजार मेंआम जनता की कयामत बदलेगी नहीं।
रामलला की आराधना की इजाजत और रामलला के भव्यमंदिर से बकरे की अम्मा को जाहिर है किसी की खैर मनाने की इजाजत नहीं मिलने वाली है और न विधर्मियों के भारतीयकरण और हिंदुत्वकरण से जनसंहार का सिलसालिा खत्म होना है क्योंकि इस उत्तरआधुनिक वैदिकी सभ्यता में भी वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति
नवउदारवादी जमाने में अमेरिकी इजराइली समर्थन से ग्लोबल हुए हिंदुत्व के रास्ते में सबसे बड़ा अवरोध बाबासाहेब अंबेडकर के साथ इस देश में कृषि आजीविका से जुड़े बहुसंख्य आबादी की लोकतांत्रिक धर्मनिरपेक्ष साझे चूल्हे की विरासत रही है और खंडित जाति धर्म नस्ल भाषा क्षेत्र अस्मिताओं और विविधताओं को जोड़कर सतीकथा की तरह एकात्म हिंदुत्व के बिना पंडित जवाहर लाल नेहरु की ओर से रखी गयी हिंदू साम्राज्यवाद की नींव पर मुकम्मल इमारत तामीर करने से पहले एक धर्मोन्मादी महाविस्फोट की जरुरत थी, जो बाबरी विध्वंस है और जिसमें बाबासाहेब समेत फूले, पेरियार, अयंकाली, लोखंडे, नारायणगुरु, हरिचांद गुकरुचांद बीरसा मुंडा, रानी दुर्गावती, सिधो कान्हो, चैतन्य महाप्रभू, संत तुकाराम, गुरु नानक, कबीर रसखान, संत गाडगे महाराज, लिंगायत मतुआ और तमाम आदिवासी किसान आोंदालनों की सारी विरासतें एकमुश्त ध्वस्त हैं।
आप चाहे बाबासाहेब का परानिरवाण दिवस मनाइये, बाबरी विध्वंस के मौके पर काला दिन, उस विरासत को फिर बहाल किये बिना मुक्तबाजारी कारपोरेट हिंदू साम्राज्यवाद की चांदमारी से आपकी जान बचेगी नहीं, चारा जो हरियाला है, वह दरअसल वधस्थल का वातावरण है।
O- पलाश विश्वास
साभार : http://www.hastakshep.com/intervention-hastakshep/issue/2014/12/05

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