द्रोपदी की देह और आत्मा दोनों सत्ता शतरंज की चालों में जीती मरती हैं और मर-मरकर जीती हैं

द्रोपदी की देह और आत्मा दोनों सत्ता शतरंज की चालों में जीती मरती हैं और मर-मरकर जीती हैं
ओस्लो में आज भारत के लिए गौरव का दिन है। भारत के लिए सम्मान का दिन है क्योंकि एक भारतीय को मिल रहा है नोबेल पुरस्कार। मुझे नहीं मालूम कि वे हमें जानते होंगे या नहीं। हमारी लिस्ट में तो वे दशक भर से हैं।
आज के रोजनामचे की शुरुआत उनको बधाई के साथ।
दुनिया भर में बाल मजदूरी और बाल शोषण के खिलाफ अद्भुत काम करने वाले कैलाश सत्यार्थी को आज नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा। नॉर्वे की राजधानी ओस्लो में आज एक भव्य कार्यक्रम में दुनिया की मशहूर हस्तियों के बीच कैलाश सत्यार्थी को नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा।
इस सम्मान को पाकर पूरा भारत देश गर्व से फूला नहीं समा रहा है।
अब हमारे तकनीकी समृद्ध लोगों की प्राथमिकता पर गौर करें और समझें कि देश क्यों मुक्त बाजार में गा गा ग्लाड है। रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड के अध्यक्ष और मुख्य कार्यकारी अधिकारी मुकेश अंबानी इस साल देश के सबसे प्रभावशाली व्यक्ति रहे। ऑनलाइन सर्च कंपनी याहू इंडिया ने अपनी रिपोर्ट में यह बात कही है।
ऑनलाइन सर्च की संख्या और पैटर्न के आधार पर साल 2014 के लिए जारी वार्षिक समीक्षा रिपोर्ट में याहू इंडिया ने देश के 50 सबसे प्रभावशाली लोगों की सूची में अंबानी दूसरी बार शीर्ष स्थान बनाने में कामयाब रहे हैं। इस सूची में उनके बाद टाटा समूह के नए चेयरमैन साइरस मिस्त्री हैं जबकि अडानी समूह के मुखिया गौतम अदानी तीसरे स्थान पर हैं। खास बात यह है कि सूची में पहले पांच स्थानों पर सिर्फ उद्योगपति ही हैं। जिनमें ए.एम. कुमार मंगलमचौथे और रतन टाटा पांचवें पायदान पर हैं।
कैलाश के अलावा शांति का नोबेल पुरस्कार पाकिस्तानी समाजसेवी और पूरे विश्व में महिला शिक्षा के लिए आवाज बनने वाली मलाला युजुफई को भी मिलेगा। मलाला युजुफई पाकिस्तान से हैं और तालिबान के खिलाफ खड़े होकर खुद लड़कियों की शिक्षा के लिए एक आवाज बन गईं।
इसी के साथ इस पर भी गौर करें कि रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (RIL) और मेक्सिको की सरकारी पेट्रोलियम कंपनी पेमेक्स के बीच तेल उत्खनन को लेकर समझौता हुआ है। समझौते के मुताबिक रिलायंस इंडस्ट्रीज मेक्सिको में तेल और गैस उत्खनन के लिए पेमेक्स को सहयोग देगी और दोनों कंपनियां आपस में मिलकर अंतरराष्ट्रीय बाजार में साझा अवसर तलाशेंगी। रिलायंस इंडस्ट्रीज़ और पेमेक्स अपनी एक्सपर्टीज़ और स्किल का इस्तेमाल गहरे पानी में तेल और गैस की खोज जैसे क्षेत्रों में इस्तेमाल करेंगी।
भारत के पूर्वी तट पर रिलायंस की शानदार कामयाबी और अमेरिकी शेल गैस में रिलायंस इंडस्ट्रीज के अनुभव को भी समझौते के मुताबिक पेमेक्स के साथ इस्तेमाल किया जाएगा। रिलायंस इंडस्ट्रीज पेमेक्स को टेक्नीकल मदद भी देगी। पर्यावरण और सामाजिक जिम्मेदारी के मोर्चे पर भी दोनों कंपनियां आपस अपने अनुभव साझा करेंगी। रिजर्व बैंक के ब्याज दरों को यथावत बनाए रखने के बाद निजी क्षेत्र के दो बड़े बैंकों आईसीआईसीआई और एचडीएफसी बैंक ने जमा दरों में 0.50 प्रतिशत तक की कटौती करने की घोषणा की है।
इसी के मध्य राज्य सभा सेलेक्ट कमिटी ने इंश्योरेंस पर रिपोर्ट सौंप दी है। चंदन मित्रा के नेतृत्व में बनी सेलेक्ट कमिटी ने अपनी रिपोर्ट में री-इंश्योरेंस की परिभाषा में बदलाव का सुझाव दिया है। सेलेक्ट कमिटी ने 49 फीसदी की सीमा सभी तरह के एफडीआई और एफपीआई पर लागू करने की सिफारिश की है। सेलेक्ट कमिटी ने नई इक्विटी के जरिए कैपिटल बेस बढ़ाने की सिफारिश की है। हेल्थ इंश्योरेंस के लिए 100 करोड़ रुपये की पूंजी अनिवार्य करने की सिफारिश की है। आईआरडीए और मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया को हेल्थ इंश्योरेंस नियम बनाने की सिफारिश की है।
अश्वत्थामा के जख्मों की तरह अमर है द्रोपदी की देह और आत्मा भी, हालांकि यह किसी महाकाव्य या पवित्र ग्रंथ में नहीं लिखा है। द्रोपदी की देह और आत्मा दोनों सत्ता शतरंज की चालों में जीती मरती हैं और मर मरकर जीती है।
याद करें कि गीता के उपदेश कुरुक्षेत्र का युद्ध शुरु होने पहले स्वजनों का वध करने से इंकार करने वाले अर्जुन को दिये गये, जिसने उस द्रोपदी को स्वयंवर में जीता जो कुरुवंश के ध्वंस के लिए राजा द्रुपद ने जो यज्ञ किया, उसकी अग्नि से निकली। कुरुवंश के राजकुमारों में सुलह हो भी गयी थी और इंद्रप्रस्थ देखने चले भी आये थे दुर्योधन, लेकिन मायामहल में जल को स्थल समझने के विभ्रम के शिकार दुर्योधन की जो हंसकर खिल्ली उड़ायी द्रोपदी ने, वहीं से शुरु हो गया था महाभारत। कुरुक्षेत्र युद्ध के अंत पर विधवा विलाप से गूंजते महाभारत में सबसे मार्मिक क्रंदन फिर वहीं अट्टहास करने वाली रमणी द्रोपदी का ही, जिसके पांचों पुत्र कुरुक्षेत्र हारने के अपराध में मार दिये गये।
कुरुक्षेत्र की वजह द्रोपदी तो कुरुक्षेत्र की अंतिम परिणति भी उसके ही खिलाफ जो एकमुशत पांच भाइयों की पत्नी है और वह भी उसके पूर्व जन्म की तपस्या का फल।
गीता उपदेश का सार भी वहीं कर्मफल सिद्धांत जो जाति व्यवस्था के नाम पर शाश्वत रंग भेद और आर्य आक्रामक वर्चस्व को वैधता देने का सबसे बड़ा उपकरण है।
लालकिले पर गीता महोत्सव इसलिए नये सिरे से कुरुक्षेत्र धर्मक्षेत्र में देश के तब्दील हो जाने का परिदृश्य है, इसे जो देख नहीं पा रहे हैं, उन पर कर्मफल का वही सिद्धांत लागू होना है। जैसी करनी वैसी भरनी।
अयोध्या काशी मथुरा के बाद अब तमाम इतिहास और भूगोल के केसरियाकरण की बारी है और ताज महल पर दावा हो चुका है, लालकिले की बारी है।
इसी के साथ शुद्धिकरण अभियान के तहत घर वापसी का खेल शुरु हो चुका है। घर लौटने वालों की जाति क्या होगी और उनकी नई जाति के प्रतिमान क्या है, हालांकि संघ परिवार ने इसका खुलासा नहीं किया है।
विडंबना यह है कि मुक्त बाजार का स्थाई भाव लेकिन अभूतपूर्व हिंसा है। परिवार, समाज भाषा संस्कृति लोक जनपद आजीविका प्रकृति पर्यावरण समेत इतिहास भूगोल के विरुद्ध एकाधिकारवादी कारपोरेट आक्रमण से कानून का राज खतम है और सांढ़ संस्कृति में अपराधी निरंकुश हैं।
ऐसे परिवेश में तात्कालिक तौर पर मुक्तबाजार को त्वरा जरुर मिलती है लेकिन गीता महोत्सव से जो निरंकुश अराजकता फैलने वाली है वह आखिरकार मुक्त बाजार और अमेरिकी हितों के ही विरुद्ध है।
खलबली इतनी है कि मुक्त बाजार के सिपाहसालार तमाम कारपोरेट दिलो दिमाग जो अब तक केसरिया कार्निवाल के मुख्य आयोजक हैं, वे सर धुनने लगे हैं।
आज के इकानामिक टाइम्स की इस खबर को जरुर पढ़े और उस पर गौर भी करेंः
At closed-door CII meet, top industrialists voice concern over apparent lack of enough efforts to kick start growth
नवभारत टाइम्स में अनुवाद भी छपा है-
मोदी सरकार बड़ी उम्मीदों के बीच 6 महीने पहले सरकार में आई थी। इंडस्ट्री को लग रहा था कि पिछले कुछ साल से इकनॉमी पर जो काले बादल छाए थे, वे जल्द ही छंट जाएंगे और देश फिर से तेजी से तरक्की की राह पर आगे बढ़ेगा। हालांकि, अब यह आस टूट रही है।
कन्फेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्रीज की पिछले शनिवार को बंद कमरे में एक मीटिंग हुई थी। इसमें इंडिया इंक के कुछ जाने-माने दिग्गजों ने यह सवाल पूछा कि क्या सरकार ग्रोथ तेज करने, इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स और नए इनवेस्टमेंट को प्रमोट करने के लिए वो कदम उठा रही है, जिनकी जरूरत है। इस मीटिंग की मीडिया को भनक नहीं लगने दी गई थी। मीटिंग में कई तल्ख कमेंट्स आए- ‘इस सरकार ने मायूसी के बाद उम्मीदों का दीया जलाया था, लेकिन अब मुझे लग रहा है कि यह आस टूट रही है।’ ‘मुझे लग रहा था कि शायद यह सरकार बोल्ड फैसले ले सकती है।’ ‘सरकार रियायतों पर जोर दे रही है, क्या उससे ग्रोथ को नुकसान नहीं पहुंचेगा?’ ‘भारत अभी भी ग्रोथ और टैक्स रिफॉर्म के मामले में पीछे है।’
गौरतलब है कि यह खबर सिर्फ आर्थिक सुधारों और सहूलियतों के बाबत नहीं है जैसे कि अक्षरशः पढ़ने से लगता है।जो धर्मोन्माद और धर्मांतरण का खुल्ला खेल फर्रूखाबादी शुरु हुआ है, उससे मुक्तबाजार को बाट ही लगने वाली है।
अल कायदा और तालिबान के जरिये मध्यएशिया के तेल कब्जाने का दांव उलटा पड़ गया है तो हिंदू तालिबान और हिंदू अलकायदा से अमेरिका और इजराइल पर भी घात लगना तय है।
तेल के कारोबार से विश्व व्यवस्था के सरगना बने अमेरिका की हुक्म उदूली करने लगा है औपेक और तेल गिरते गिरते पैसठ डालर पर पहुंच गया। डालर की तो अब ऐसी की तैसी होने वाली है।
जाहिर है कि डालर के जरिये अमेरिकी कंपनियों को अपना कारोबार सौंपने वाले भारतीय उद्योग जगत का हाल भी वही होना है जो भारतीय कृषि, उत्पादन प्रणाली और खुदरा बाजार का हुआ है।
हम आम भारतीयों की तरह बुरबक नहीं हैं पैसा बनाने वाले।
पैसे डूबने के खतरे हों तो उनके त्रिनेत्र खुल जाते हैं।
वह त्रिनेत्र खुलने ही वाला है।
उद्योग जगत के लिए यह खतरे की घंटी है कि धर्मोन्माद का यह दावानल कहीं जनादेश प्रयोजन और आर्तिक सुधारों और टैक्स होलीडे, कमीशन वगैरह के अलावा उनका आशियाना ही न जला दें।
सारे कानून बदले जा रहे हैं। फिर कारपोरेट बेचैनी का सबब क्या है, समझने वाली बात है।
भूमि अधिग्रह्ण के नये संशोधन के तहत नेशनल हाईवे पर जमीन कोने वालों को धेला तक नहीं मिलने वाला है। कोलकाता में उद्योगपति आदि गोदरेज कल ही बोले कि जमीन की हदबंदी सिरे से हटा देनी चाहिए।
जाहिर है, वह प्रक्रिया शुरु हो गयी है। भूमि सुधार के घोषित लक्ष्य के बदले जमीन की यह कारपोरेट चकबंदी का जमाना है।
जैसे ब्रिटेन में बाड़ेबंदी हुई, वैसा ही कुछ नजारा है।
कल कारपोरेट जमावड़े के साथ सुंदरवन में बाघ देखने गयी मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और लौटते हुए उनकी बाट जोह रही सुंदरवन की विधवाओं की ओर देखा तक नहीं।
भारत भर की स्त्रियों की उसी विधवा दशा और वृंदावन परिणति ही गीता के मनुसमृति अनुशासन का आशय है।
हमारे गुरुजी तारा चंद्र त्रिपाठी सत्तर के दशक में कहते थे कि यह देश सेक्स का भूखा है। इतनी वर्जनाएं है कि जब ये वर्जनाएं टूटेंगी तो कयामत ही समझो।
हम लोग तब टीनएजर थे और उनकी कड़ी निगाह रहती थी कि हम लोग सेक्स के तिलिस्म में फंस न जायें कहीं।
आज वह तिलिस्म ही यह भारत देश है और मुक्तबाजार की देहमुक्ति सुगंध में वर्जनाएं सारी एकमुश्त टूटने लगी है, रिश्तों की मर्यादाएं भंग हैं।
खबरों पर गौर भी कीजियेगा, हम उदाहरण नहीं गिना रहे हैं कि कहां क्या हो रहा है। सब कुछ खुलेआम हो रहा है और हिंदुत्व के कार्निवाल के तहत हो रहा है।
सारी वर्जनाएं टूट रही हैं और कयामत हमारे दरवज्जे खड़ी मुस्कुरा रही है और हम खुल्ला ताला तोड़कर रासलीला में निष्णात है और रासलीला भी उन्हीं की, जिनका वह पवित्र गीता उपदेश है।
O- पलाश विश्वास
साभार:http://www.hastakshep.com/interventionhastakshep/%E0%A4%AC%E0%A4%B9%E0%A4%B8/2014/12/10/%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%AA%E0%A4%A6%E0%A5%80-%E0%A4%95%E0%A5%80-%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B9-%E0%A4%94%E0%A4%B0-%E0%A4%86%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%BE-%E0%A4%A6%E0%A5%8Butm_source=feedburner&utm_medium=feed&utm_campaign=Feed%3A+Hastakshepcom+%28Hastakshep.com%29
No comments:
Post a Comment