Thursday, 11 December 2014

स्त्री देह ही अब मुक्त बाजार है


स्त्री देह ही अब मुक्त बाजार है

स्त्री देह ही अब मुक्त बाजार है

कोई दूसरा होता तो मटिया देता और नजरअंदाज कर जाता या ज्यादा गंभीर होता, तो सीधे जवाब दे देता।
हमने तुरंत ही फोन लगाया। उसने उठाया नहीं।
समझ गये हम पट्ठा घोड़ा बेचकर सो गया।
हम तो भोर चार पांच बजे तक पीसी के साथ होते हैं।
अभी हम गहरी नींद में थे कि अभिषेक का फोन आ गया। मतलब तो समझबे करै है। बोला, कि नई दिल्ली में बलाताकार का मामला इंडिविजुअल केस है जबकि निवेश का फेनामेनन दूसरा होता है।
इस पर हमने कहा कि यह महज कानून व्यवस्था का मामला नहीं है।
उबेर ग्लोबल कंपनी है और उसका निवेश भी ग्लोबल है।
दुनिया भर में नई दिल्ली की प्रतिक्रिया हो रही है। उसको जो छूट दी गयी है, उसीका नतीजा यह बलात्कार है।
अगर उबेर अमेरिकी कंपनी नहीं होती तो यादवज्यू का यह करिश्मा देखने को नहीं मिलता।
हम दरअसल कानून व्यवस्था की बात ही नहीं कर रहे हैं।
गौरतलब है कि अमेरिका के पापकर्म के खुलासा वाले तमाम दस्तावेजों को उत्तर आधुनिक विमर्श वाले कांस्पिरेसी थ्योरी कहकर मटिया देते हैं।
इलुमिनेटी परिवार का शताब्दियों का इतिहास भी, हथियारों का कारोबार भी, मस्तिष्क नियंत्रण विचार नियंत्रण तंत्र भी, तेल युद्ध भी और सारा अमेरिकी इजराइली पाप कर्म कांसपिरेसी थ्योरी कहा जाता है।
अभिषेक से कमसकम दस पंद्रह सालों का अपनापा ही नहीं है, बल्कि वह हमारा भविष्य भी है और हम उसे यह कह नहीं सकते कि यह मंतव्य करके वह अमेरिका से सावधान समेत हमारा अभ तक का रोज रोज का लिखा सब कुछ खारिज किये जा रहा है एक झटके से। क्योंकि हम अच्छी तरह जानते हैं कि ऐसा आशय उसका नहीं है।
उसने कहा कि अर्थव्यवस्था की बात हम समझ रहे हैं लेकिन आपने जो लिखा है, उससे तो लगता है कि बलात्कार के लिए ही अमेरिका ने निवेश किया है।
खुदै अभिषेक लिख मारो हैः भलेमानुस अर्जुन को अपने रिश्‍तेदारों-संगियों-प्रियजनों पर तीर चलाने में संकोच हो रहा था। तब श्रीकृष्‍ण ने उसे युद्धभूमि में एक लंबा लेक्‍चर दिया। इस लेक्‍चर से वह अपने भाई-बंधुओं को मारने के लिए प्रेरित हुआ। कालांतर में इस लेक्‍चर को गीता का नाम दिया गया। गीता मूलत: ”युद्ध का दर्शन” है।
अभिषेक ने आगे लिखा हैः वे चाहते हैं कि इस देश के सारे भलेमानुस अर्जुन बन जाएं। अपने भाइयों को मारें-काटें। आपस में लड़ें। सिविल वॉर हो जाए। भारत में एक और महाभारत हो। चूंकि लोग मोटे तौर पर सभ्‍य हो चुके हैं और साम्‍प्रदायिक नफ़रतों का डोज़ उनके बहुत काम नहीं आ रहा, इसलिए गीता को राष्‍ट्रीय पुस्‍तक बनाना उनके लिए इकलौता विकल्‍प रह गया है।
यह सही है कि हम भौंकने वाले कम हैं।
हम विशेषज्ञ भी नहीं हैं। जो विशेषज्ञ हैं वे सत्ता पक्ष में हैं ही नहीं।
हमारी समझ में जो आता है, उसे साझा करने की कोशिश करते हैं और कारपोरेट मीडिया के विपरीत हम लोग वैकल्पिक मीडिया में हर सूचना को साझा करते हैं और तत्काल करते हैं। यह फास्ट फूड जैसा करतब ही समझिये। भाषा और शैली की अपनी सीमाये हैं और हम शायद पूरी बात सही तरीके से समझा नहीं पा रहे हैं।
लेकिन हमने अभिषेक को बता दिया कि अनमेरिका निवेश का आशय वही बलात्कार है।
अंततः मुक्त बाजार का निर्णायक शिकार वही स्त्री है, जिसकी देह और आत्मा पर लिखा होता है हर विजेता का इतिहास।
द्रोपदी की तरह तमाम यूनानी मिथक हेलेन से जुड़ते हैं। ट्राय के युद्ध में सारे देव देवियां पक्ष विपक्ष में थीं और उनके मिथक ही यूरोपीय साहित्य, संस्कृति के मुहावरे हैं।
ठीक वैसे ही जैसे हमरा महाकाव्यों रामायण और महाभारत के तमाम मिथक हमारी भाषाओं और लोक के मुहावरे हैं।
हेलेन को भी ट्राय के युद्ध का कारण बताया जाता है।
ट्राय का वह युद्ध भी हेलेन की देहमुक्ति की स्वतंत्रता के विरुद्ध था। जो उसकी देह और आत्मा पर लड़ा गया, जैसा महाभारत द्रोपदी की देह और आत्मा पर।
इलियड में तो पीड़ित वह अकेली स्त्री हेलेन है।
महाभारत के गर्भनाल से जुड़े हैं भागवत गीता और भागवत पुराण। जहां राधा से लेकर द्रोपदी हर स्त्री अबाध यौन शोषण की शिकार है।
गंगा, सत्यवती, अंबा, अंबिका, अंबालिका, कुंती,  माद्री के सारे मिथक स्त्री देह के साथ पुरुषतांत्रिक व्याभिचार को वैधता देते हैं। यौनता के अबाध कार्निवाल की घटना और परिणाम का उत्तरदायी स्त्री मन और शरीर, यही हमारा सनातन धर्म है, धर्मांतर में या से कुछ फर्क नहीं पड़ता है।
रंग बिरंगे पुरोहितों मुखियों का फतवा ही स्त्री नियति है। यह नियति मुक्त बाजार में बदली नहीं है, और भयंकर हो गयी है।
मुक्त बाजार के राजकाज में गीता को राष्ट्रीय धर्म ग्रंथ बनाया जाना उसी बलात्कार संस्कृति का धारक वाहक है, जो मुक्त बाजार की सांढ़ संस्कृति भी है।
ट्राय विध्वंस का वह काठ का घोड़ा अब हिंदुत्व का राजकाज है और उसके पेट से विदेशी सेनाएं हमें खत्म करने को निकल रही हैं।
रात दिन सातों दिन चौबीसों घंटे जो कामकला का प्रदर्शन है खुल्ल खुल्लम, फ्रीसेक्स का जो खुल्ला आमंत्रण है और जो फ्री सेक्स बाजार है, जो कंडोम के निर्लज्ज विज्ञापन पल छिन पल छिन हैं, जो वियाग्रा जापानी तेल और सेक्सी सुगंध के अलावा सौंदर्य बाजार है।
वहां बलात्कारियों को फांसी देकर बलात्कार रोकने का रियाज बेमतलब है।
क्योंकि अभिषेक के कहे मुताबिक कानून व्यवस्था का यह कोई इकलौता मामला नहीं है, सीधे तौर पर निवेश का मामला है, जिस निवेश के हितों की हिफाजत के लिए जघन्य से जघन्य अपराधी को शह दी जाती है कानून व्यवस्था और लोकतंत्र की धज्जियां उधेड़कर और कारपोरेट पूंजी के दम पर युद्ध अपराधियों को सत्ता की बागडोर सौंप दी जाती हैं, जो स्त्री अस्मिता को कुचलकर ही राजसूय का आयोजन करते हैं।
हजारों साल से सेक्स से वंचित देश में हीनताग्रंथियों से लैस समाज में, नस्ली और जाति भेदभाव, धार्मिक अनुशासन की वजह से पश्चिम के विपरीत सेक्स के लिए समानता के अधिकार से वंचित बहुसंख्य जनसंख्या के मध्य पुरुषतांत्रिक समाज में जहां स्त्री दरअसल वही द्रोपदी है, घटना की जिम्मेदार भी वह और परिणाम भी उसे भुगतने हैं, जो शूद्र भी है और पुरुषतंत्र में जो सिर्फ भोग्या, नरकद्वार है, शास्त्रों के मुताबिक उसकी सर्वत्र पूजा पूजा पंडालों में ही संभव है।
पूजा पंडालों से बाहर फिर वह या तो सती है या फिर वेश्या।
स्त्री देह ही अब मुक्त बाजार है।
ऐसे में बलात्कार जैसी घटनाओं के आशय सीधे अर्थव्यवस्था से जुड़ते हैं, सारे के सारे बलात्कारियों को भले ही आप फांसी दे दोबलात्कार रुकेंगे नहीं कि क्योंकि मुक्तबाजारी समाज में अपने घर में भी स्त्री सुरक्षित नहीं है।
हमारे मित्रों, परिजनों और खासतौर पर सविता को हमारी सेहत के लिए फिक्र लगी रहती है और उनकी हिदायते मानना मेरे लिए नामुमकिन है।
हम तो जानते हैं कि अपने रचे हुए नरक को भोगे बिना नरक की मेहरबानी भी नहीं मिलती और कयामत सी जिंदगी का बोझ ढोना ही होता है। रोज जी जीकर मरकर जीना होता है।
हम जो मुक्तबाजारी अर्थव्यवस्था के तिलिस्म को तोड़ नहीं सकें तो इसका पूरा मजा लिए बिना मरना भी मुश्किल है।
इस भारत देश का राजकाज राजकाज नहीं कारोबार है अमेरिकी।
नई दिल्ली में उबेर वेब टैक्सी के गोरखधंधे के खुलासे के बाद साफ हो गया है कि अमेरिकी हितों के लिए सरकार अमेरिकी कंपनियों की कोई निगरानी करना तो दूर, उन पर किसी तरह का अंकुश भी नहीं रखती।
भारतीय कंपनियों को जो नाना प्रकार के कर उपकार भरने पड़ते हैं, अमेरिकी और दूसरी विदेशी कंपनियों को वह झमेला झेलना ही नहीं है।
अबाध पूंजी प्रवाह का बीज मंत्र यह है।
सेज और औद्योगिक गलियारों में टैक्स होलीडे का प्रावधान है।
उबेर प्रकरण से साफ है कि सेज गलियारा के अलावा राजधानी नई दिल्ली में भी अमेरिकी पूंजी के लिए टैक्स होली डे है।
हमारे हितैषी हमारे लिखे से भी परेशान हो जाते हैं। लेकिन हम जैसे दो चार भौकने वाले कुत्तों की परवाह इस मुक्तबाजार को नहीं है क्योंकि उन्हें मालूम है कि हमारी कोई सुनवाई नही है।
वे यकीनन हमें फोकस पर लाने की गलती नहीं कर सकते। इसलिए लिखने वालों से निवेदन है कि बिंदास लिखिये, जो हाल है, उससे बुरा कुछ भी हो नहीं सकता। फिलहाल इस देश में हमारी कोई भूमिका नहीं है।
इसी बीच संसद में हो हल्ला का दौर फिर शबाब पर है और आगरा में मुस्लिम समाज के 57 परिवारों के धर्म परिवर्तन के मामले ने राजनीतिक रंग अख्तियार कर लिया है। राज्यसभा में बीएसपी की नेता मायावती ने लालच के आधार पर लोगों को फुसलाने के आरोप लगाए। राज्यसभा में विपक्षी सांसदों ने इस मामले में प्रधानमंत्री के बयान की मांग करते हुए कहा कि सरकार इस मामले में दखल दे। वहीं सरकार ने कहा कि यह राज्य सरकार का मामला है।
O –  पलाश विश्वास
साभार:http://www.hastakshep.com/intervention-hastakshep/%E0%A4%AC%E0%A4%B9%E0%A4%B8/2014/12/10/%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%80-%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B9-%E0%A4%B9%E0%A5%80-%E0%A4%85%E0%A4%AC-%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%A4-%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%9C?utm_source=feedburner&utm_medium=feed&utm_campaign=Feed%3A+Hastakshepcom+%28Hastakshep.com%29

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