
मुनाफे का खेल-हराम की कमाई अब धर्म है
राजनीतिक मोर्चाबंदी नहीं, अब जरूरत है आम जनता के मोर्चे की!
गांधी की वापसी के इतिहास के मौके पर राजघाट पर अनशन, लेकिन गोडसे समय के खिलाफ फिर लवण सत्याग्रह की मस्त गरज आहे
अबे चैतू, तू कथे जात है। देश मुआ जात है, तू जिंदा रहबे?
ये तस्वीरें बताती हैं कि हम किस भारत का कायाकल्प करने में लगे हैं। गांधी जिसे पागल दौड़ बताते रहे हैं, उनके अनुयायी उस पागल दौड़ में शामिल हैं।
वही पागल दौड़ अनंत विकास गाथा है। वही पागल दौड़ कटकटले अंधकार है। वही
पागल दौड़ हिंदुत्व है जो दरअसल हिंदू साम्राज्यवाद है। नस्ली भेदभाव है।
अमेरिकी जायनी जनसंहार राजसूय है और सारा देश महाभारत है। धर्म की बात
गांधी भी करते थे। रामराज्य की बात भी करते थे गांधी। जब नाथूराम गोडसे ने
गोली दाग दी तो बापू के आखिरी शब्द थेः हे राम!
उन्हीं राम के नाम यह पागल दौड़ है।
सेवाग्राम
में इस पागल दौड़ चेतावनी के मुखातिब हुए हम, मैं, रविजी और निसार अली। हम
जैसे बीचोंबीच हबीब तनवीर के आगरा बाजार में नाचा गम्मक खेल रहे हों इस
सीमेंट के जंगल के कटकटले अंधकार में।
नागपुर से ट्रेन से लौट रहे थे तो टीटीई के भेष में रामभक्त एक देखा जो
नागपुर से लेकर रायगढ़ तक जय श्री राम कहते-कहते रायपुर से खाली हुआ जात
बैलगाड़ी के सफर में रात को कड़ाके की सर्दी के एवज में बिना रिजर्वेशन घुस
आये मुसाफिरों से जय श्री राम कह-कहकर पचास से दो सौ रुपये वसूलता रहा।
यही राजकाज है। संत समागम भी यही है।
गांधी बिना श्रम संपत्ति के खिलाफ थे। बिना श्रम भोजन उनके लिए हराम था। अब रामजादा हुआ हो या नहीं, देश गांधी के सिद्धांत के मुताबिक हरामजादा हुआ जात है। डायन हुई मंहगाई, सैंया हमार कमात भौत है, डायन ससुरी खाय जात है।
आंकड़ों की महिमा भारी मंहगाई भी जीरो दीख्ये अब, लेकिन जनता फिर भी मारी-मारी। सब ससुरे मुनाफा का खेल, हराम की कमाई अब धर्म है
। हराम की कमाई अब अर्थ व्यवस्था है।
संत
विनोबा जो सूत कातते थे, उसके मेहनताना बतौर उन्हें तीन आना मिलता था, उसी
का खाते थे और गांव वालों से खुद को भंगी कहते थे। नदी में बाढ़ आयी तो
पाखाना परिष्कार करने गांव जा नहीं पाये तो पवनार पार से हांक लगायी,
गांववालों, नदी में बाढ़ है और आज तुम्हारा भंगी नहीं आयेगा।
अबे चैतू, तू कथे जात है। देश मुआ जात है, तू जिंदा रहबे?
गौर तलब है कि राजघाट पर आज से तीन
दिनों के लिए गांधीवादी और सर्वोदयी कार्यकर्ताओं का अनशन है गांधी के
नासमझ हत्यारे नाथूराम गोडसे के महिमामंडन के खिलाफ।
सेवाग्राम
में वहां के प्रभारी जयवंत मठकर ने हमें उस कार्यक्रम का आमंत्रण पत्र
दिखाया था 6 जनवरी को जब हम छत्तीसगढ़ के नाचा गम्मक कलाकार निसार अली और
नागपुर के रंगकर्मी व युवा कारोबारी रविजी के साथ वर्धा में दो दिवसीय सफदर
हाशमी रंग मोहत्सव के उपरांत वहां पहुंचे।
कल आज की खबरों में राजघाट पर गांधी की
दक्षिण अफ्रीका से वापसी के सौ साल के मौके पर इतिहास में वापसी की कोई
हलचल कहीं है नहीं और न राजघाट पर अनशन की खबर है। सर्वोदयी कार्यकर्ताओं
ने याद करें कि बाबरी विध्वंस के बाद भी राजघाट पर अनशन किया था।
इस वापसी शताब्दी पर देश बेचने वालों का कार्निवाल लेकिन खूब जोरों पर है। गांधी के हत्यारे
की मूर्ति गढ़ दी गयी है और नई दिल्ली में 30 जनवरी रोड के एकदम पास मंदिर
मार्ग स्थित में उसमें प्राण प्रतिष्ठा भी कर दी जानी है, ऐसे में प्रथम
स्वयंसेवक ने गांधी के दक्षिण अफ्रीका से भारत वापस लौटने के सौवें साल पर
डाक टिकट भी जारी कर दिया है। जबकि मेरठ में संत समागम मध्ये गोडसे मंदिर बनने की पूरी तैयारी है। भूमि पूजन संपन्न है।
तेरह साल की उम्र में बापू के सान्निध्य में आयी कुसुम ताई पांडे जो अब
तेरानब्वे साल की हैं और महाराष्ट्र में कम्युनिस्ट आंदोलन से जुड़ी अंबर
चरखा से सूत कात रही युवा प्रभाताई ने एक स्वर से कहा कि नाथूराम गोडसे का
मंदिर इस देश में नहीं बनना चाहिए।
कुसुमताई ने कहा कि अब फिर एक लवण सत्याग्रह की दरकार है पागल दौड़ के खिलाफ तो कुछ दूसरे कार्यकर्ताओं ने कहा कि
उस नासमझ हत्यारे को माफ कर दिया बापू ने लेकिन यह देश उसे माफ नहीं कर सकता।
जयवंत
मठकर ने जब उस बहुचर्चित गांधी के नाम नेताजी के पत्र की चर्चा की जिसमें
नेताजी ने आजाद हिंद फौज के भारत में प्रवेश के लिए गांधीजी से इजाजत मांगी
और उन्हें फादर आफ दि नेशन नाम से पहले संबोधित किया।
उनने याद दिलाया शांतिनिकतन में बापू के सान्निध्य कविगुरु रवींद्र की और
कहा कि रवींद्र ने ही गांधी को महात्मा कहा। तो ढेरों बातें याद आयी और
सेवाग्राम की सरजमीं पर उस माटी में खड़े होकर जहां खुल्ले आसमान के नीचे
बापू की प्रार्थना सभा होती थी और जहां 1936 में बापू ने पीपल का पेड़
लगाया था, खुल्ला बाजार में धर्म के नाम, राम के नाम
हमें चारों तरफ से दसों दिशाओं से बेदखल करती पागल दौड़ याद आयी और अचानक अहसास हुआ कि गांधी कोई कांग्रेस के नेता तो थे नहीं।
वे नेहरु के भी उतने ही नेता थे जितने नेताजी के, समाजवादियों के जितने उतने ही कम्युनिस्टों के।
सारी अस्मिताएं एकजुट थीं अस्मिताओं के आर-पार और यह जनता का मोर्चा था, जिसके नेता थे बापू।
अमेरिकी की स्वतंत्रता की लड़ाई, फ्रासीसी क्रांति से लेकर हाल में दक्षिण
अफ्रीका की क्रांति और यहां तक कि अमेरिकी अश्वेत प्रथम राष्ट्रपति बाराक
ओबामा के चुनाव में भी किसी विचारधारा, किसी अस्मिता या किसी राजनीति के
बजाय निर्णायक था फिर वही सामाजिक और उत्पादक शक्तियों का संयुक्त मोर्चा।
क्या हम वह मोर्चा गढ़ नहीं सकते?
वही सामाजिक और उत्पादक शक्तियों का संयुक्त मोर्चा?
जनता का मोर्चा?
हमारे भीतर उस वक्त जैसे केदार जलप्रलय घमासान।
जैसे सारे के सारे पहाड़ दरकने लगे।
जैसे घाटियां यकबयक गायब होने लगीं।
जैसे सारे के सारे ग्लेशियर रेगिस्तान। जैसे भूकंप से जलथल एकाकार।
जैसे एडियोएक्टिव पोलोनियम जहर से हजार भोपाल गैस त्रासदियों के बीचोंबीच
अकले हम महाभारत युद्ध के सारे जख्मों, सारे रक्तपात का बोझ ढोते हुए
अश्वत्थामा।
हमने नई तालीम के बच्चों
को टिफन खाते हुए, टिफिन साझा करते हुए गांधी की चर्चा करते सुना और दोपहर
के भोजन से पहले सफाई करते बच्चे जब कहने लगे कि उन्हें मोदी नहीं, गांधी बनना है तो हमारे होश ठिकाने आये।
हमने गांधी को देखा नहीं है। न हम गांधी
को समझे हैं और न उनके सत्य और सत्याग्रह को। हम जैसे नासमझ गांधीविरोधियों
की रहने दें, जो गांधीवाद के झंडेवरदार हैं, पागल दौड़ की उनकी सियासत के
मद्देनजर कहना सही होगा कि इस देश में गांधी को अब शायद ही कोई समझता हो।
हमने इरोम शर्मिला नाम की हमारी सबसे प्रिय, सबसे खूबसूरत एक लड़की के 14
साल का स्तायग्रह देखा है और आमरण अनशन मार्फते उनकी सत्यनिष्ठा देख रहे
हैं। सत्ता के सैन्यतंत्र विरुद्ध लोकशाही की बहाली की इरोम की लड़ाई को
समझें तो शायद हम गांधी को भी समझ सके हैं। गांधी के देश ने गांधी की सबसे
महान अनुयायी में एक इरोम शर्मिला को भी भुला दिया गया। जबकि इरोम शर्मिला
के संघर्ष की कहानी जबरदस्त नैतिक बल से भरी हुई है। इसके बावजूद इस संघर्ष
में हिंसा की जगह नहीं है। इस कहानी में बलिदान है, सम्मान के साथ जीने के
हक के लिए संघर्ष है। ये कहानी शुरू हुई थी सुदूर पूर्वोत्तर की एक छोटी
सी झोपड़ी में इरोम आठ भाई-बहनों में सबसे छोटी हैं, जब इरोम का जन्म हुआ तब
उनकी मां इरोम सखी नवजात बच्ची को अपना दूध पिलाने के काबिल नहीं रहीं।
इरोम को गांव की कई महिलाओं ने अपना दूध पिला कर एक तरह से जीवन दान दिया
था।
वर्धा में एक मजदूर है जिसकी दिहाड़ी का
इंतजाम हम अब कर नाही सकत है। वह काफिले की मजदूरी करता है। उसकी संगत में
है एक कुमार गौरव। लड़के बहुत होशियार हैं। उनन के साथ दंगल जंगल के मोर
मोरनियां हैं, जिनकी वसंत बहार है वर्धा महात्मा गांधी हिंदी विश्वविद्यालय
में, जहां हाशिमपुरा मलियाना नरसंहार का भंडाफोड़ करने वाले बहुनिंदित एक
कुलपति विभूति नारायण राय ने नजीर हाट, बिरसा मुंडा हास्टल, भगत सिंह
सुखदेव राजगुरु हास्टल, कामिल बुल्के अंतरराष्ट्रीय छात्रावास, बाबा
नागार्जुन सराय, मुंशी प्रेमचंद मार्ग, हबीब तनवीर प्रेक्षागृह वगैरह-वगैरह
से हिंदी का एक बेममिसाल गांव रचा है और हमारे कुछ पुरातन मित्र जो पगलैट
किसम के रहे हैं, रघुवीर सहाय के चेले चपाटे भी हैं, वहां वे भी बसै हैं।
वहां दो दिनों तक ऊधम काटने के बाद बचे खुचे जनमाध्यम भारतीय रंगमंच के
बिखरे रंगकर्मियों में संवाद की पहल शुरु करने की एक पहल भी हो गयी ठैरी,
जिसके बारे में सिलसिलेवार तरीके से बतायेंगे।
नाचा गम्मक को हबीब तनवीर को न जानने वाले न समझें, ऐसी बात नहीं है। नाचा गम्मक
कलाकार निसार मियां इप्टा के सहयोग से छत्तीसगढ़ में एक रंगकर्मी मोर्चा
बना चुके हैं और नागपुर जंकशन पर शैला हाशमी के राजधानी एक्सप्रेस के
इंतजार में इस मोर्चे को हम राष्ट्रीय शक्ल देने के बारे में घंटों बतियाते
रहे। वर्धा के छात्र छात्राओं शिक्षकों और वहां हाजिर नाजिर रंगकर्मियों
के सौजन्य से एक पहल भी हमने रंग चौपाल के जरिये कर दी है।
हम गोरख पांडेय छात्रावास में लहूलुहान
असंख्य गोरख पांडेय के मुखातिब थे कि रविजी अपनी कार लेकर सेवाग्राम हो
आये। नागार्जुन सराय में हमने उन्हें धर दबोचा और दो दिन में हम मुक्म्ल
छात्र अवतार में थे। अकेले ही हो आये, अभ भरिये जुर्माना। तो उनने जो
जुर्माना भरा, बाकायदा सारथी बनकर ले गये हमें सेवाग्राम, जहां जाकर शोर
मचाने के लिए मशहूर हो चुके हम हकबका गये।
पूछा हमने निसार भाई से, हां भाई चैतू, कथे ले आयो हो हमें, ई तो हमार घर
लाग्यो है। जो घर पीछे छोड़ आयो, जो घर सीमेट के जंगल में बेइंतहा एक कब्र
है, ससुरा वहीच घर इथे दीख गयो रे।
मन बेहद कच्चा कच्चा हो गयो रे भाया।
O- पलाश विश्वास
साभार : http://www.hastakshep.com/intervention-hastakshep/travelogue/2015/01/09/%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%AB%E0%A5%87-%E0%A4%95%E0%A4%BE-%E0%A4%96%E0%A5%87%E0%A4%B2-%E0%A4%B9%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AE-%E0%A4%95%E0%A5%80-%E0%A4%95%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%88?utm_source=feedburner&utm_medium=feed&utm_campaign=Feed%3A+Hastakshepcom+%28Hastakshep.com%29
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