खत्म नहीं हुई औरत को गुलाम मानने की सोच

Updated @ 9:02 PM IST
आज जब मल्टी रिलेशनशिप और ब्रेकअप को पार्टी देकर
सेलिब्रेट करने का जमाना है, ऐसे में एक डॉक्टर अपनी सहयोगी और सहपाठी
डॉक्टर के प्यार में इतना पागल हो गया कि उसने कुछ किशोरों को उस पर तेजाब
फेंकने की ट्रेनिंग दी। बताया कि सिरिंज से किस तरह तेजाब फेंकना है, जिससे
कम नुकसान हो। यह डॉक्टर इस महिला डॉक्टर से नाराज था, क्योंकि उसने कभी
उसके प्यार का जवाब नहीं दिया था। हां, वह उसे अपना सबसे अच्छा दोस्त जरूर
मानती थी। इसीलिए जब उस पर हमला हुआ, तो उसने सबसे पहले उसे ही फोन किया।
हमारी पीढ़ी के लोगों के जमाने में मुकेश की आवाज में एक गाना खूब बजता था-तुम अगर मुझको न चाहो तो कोई बात नहीं, तुम किसी और को चाहोगी तो मुश्किल होगी। और वह मुश्किल बेचारी लेडी डॉक्टर को अपने चेहरे और आंख पर तेजाब के हमले के रूप में झेलनी पड़ी। डॉक्टरों का कहना है कि उसकी आंख की रोशनी शायद ही वापस आ पाएगी। एक हंसते-खिलखिलाते जीवन को एक ईर्ष्यालु पुरुष ने इस तरह रौंद दिया। पढ़-लिखकर भी वह मानसिकता नहीं बदली कि मैं पुरुष अगर किसी स्त्री को चाहता हूं, तो उस स्त्री को मना करने का, किसी और को पसंद करने का कोई हक नहीं। स्त्री नहीं, मेरी गुलाम। और अगर वह ऐसा करेगी, तो जान से हाथ धो बैठेगी या इस प्रकार के तेजाबी हमलों का शिकार होगी। स्त्री दुनिया के हर आदमी की जैसे जागीर है।
लेकिन आजकल इस तरह के कुप्रयास भारी पड़ते हैं। अपराधी बचने की कोशिश करते-करते पकड़े जाते हैं। हालांकि दुख इस बात का है कि ऐसे जघन्य अपराधों के मामलों में भी कोई खास सजा नहीं मिलती। हां, ऐसे अपराधों की शिकार महिलाओं को जरूर जीवन भर मुसीबतों का सामना करना पड़ता है। ऐसी महिलाओं को एसिड अटैक सरवाइवर कह देने भर से ही बात नहीं बनती। पिछले दिनों दिल्ली में तेजाब की बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। मगर रोक सिर्फ कागजों तक ही सीमित रहती है। जितनी रोकें लगती हैं, उनकी जांच करने वाले अधिकारियों की जेबें भरती चली जाती हैं। वर्ना ऐसा कैसे हुआ कि हमलावर किशोर खुले बाजार से पैंतालीस रुपये का तेजाब खरीद सका। इस कांड के आरोपी किशोरों ने पच्चीस हजार रुपये के लिए इस कृत्य को अंजाम दिया। जब दिल्ली में यह हाल है, तो छोटे शहरों में क्या होता होगा? महिला डॉक्टर पर एसिड फेंकने वाले इन नाबालिग किशोरों को सजा हुई भी, तो मात्र तीन साल की होगी। जबकि विदेशों में अगर नाबालिग होते हुए भी किसी किशोर ने बड़ों जैसा अपराध किया है, तो उस पर बड़ों का कानून लागू होता है। बाल विकास मंत्री मेनका गांधी भी अपराधों में किशोरों की बढ़ती भागीदारी और कम दंड मिलने के बारे में कई बार खुलेआम चिंता प्रकट कर चुकी हैं। सरकार ने भी बार-बार कहा है कि तेजाब से हमला करने वालों से कठोरता से निपटा जाना चाहिए। लेकिन कब और कैसे?
होना तो यह चाहिए कि जिस डॉक्टर ने यह हमला कराया, उसे और इन हमलावर किशोरों को कड़ी सजा मिले। उस महिला के इलाज और प्लास्टिक सर्जरी का खर्च और भारी मुआवजा भी इस डॉक्टर से वसूला जाना चाहिए। जब तक ऐसे अपराधी बचते रहेंगे, इनसे सीख लेकर और हमले होते रहेंगे। अफसोस इसका है कि औरतों को इस बर्बर पुरुष मानसिकता का शिकार उस दौर में होना पड़ रहा है, जब हम महिलाओं की सुरक्षा और चौतरफा विकास की बात लगातार कर रहे हैं। यह कैसा विकास है, जहां औरतों को सबक सिखाने के लिए दरिंदे हर नुक्कड़, चौराहे यहां तक कि घरों में भी मौजूद हैं!
हमारी पीढ़ी के लोगों के जमाने में मुकेश की आवाज में एक गाना खूब बजता था-तुम अगर मुझको न चाहो तो कोई बात नहीं, तुम किसी और को चाहोगी तो मुश्किल होगी। और वह मुश्किल बेचारी लेडी डॉक्टर को अपने चेहरे और आंख पर तेजाब के हमले के रूप में झेलनी पड़ी। डॉक्टरों का कहना है कि उसकी आंख की रोशनी शायद ही वापस आ पाएगी। एक हंसते-खिलखिलाते जीवन को एक ईर्ष्यालु पुरुष ने इस तरह रौंद दिया। पढ़-लिखकर भी वह मानसिकता नहीं बदली कि मैं पुरुष अगर किसी स्त्री को चाहता हूं, तो उस स्त्री को मना करने का, किसी और को पसंद करने का कोई हक नहीं। स्त्री नहीं, मेरी गुलाम। और अगर वह ऐसा करेगी, तो जान से हाथ धो बैठेगी या इस प्रकार के तेजाबी हमलों का शिकार होगी। स्त्री दुनिया के हर आदमी की जैसे जागीर है।
लेकिन आजकल इस तरह के कुप्रयास भारी पड़ते हैं। अपराधी बचने की कोशिश करते-करते पकड़े जाते हैं। हालांकि दुख इस बात का है कि ऐसे जघन्य अपराधों के मामलों में भी कोई खास सजा नहीं मिलती। हां, ऐसे अपराधों की शिकार महिलाओं को जरूर जीवन भर मुसीबतों का सामना करना पड़ता है। ऐसी महिलाओं को एसिड अटैक सरवाइवर कह देने भर से ही बात नहीं बनती। पिछले दिनों दिल्ली में तेजाब की बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। मगर रोक सिर्फ कागजों तक ही सीमित रहती है। जितनी रोकें लगती हैं, उनकी जांच करने वाले अधिकारियों की जेबें भरती चली जाती हैं। वर्ना ऐसा कैसे हुआ कि हमलावर किशोर खुले बाजार से पैंतालीस रुपये का तेजाब खरीद सका। इस कांड के आरोपी किशोरों ने पच्चीस हजार रुपये के लिए इस कृत्य को अंजाम दिया। जब दिल्ली में यह हाल है, तो छोटे शहरों में क्या होता होगा? महिला डॉक्टर पर एसिड फेंकने वाले इन नाबालिग किशोरों को सजा हुई भी, तो मात्र तीन साल की होगी। जबकि विदेशों में अगर नाबालिग होते हुए भी किसी किशोर ने बड़ों जैसा अपराध किया है, तो उस पर बड़ों का कानून लागू होता है। बाल विकास मंत्री मेनका गांधी भी अपराधों में किशोरों की बढ़ती भागीदारी और कम दंड मिलने के बारे में कई बार खुलेआम चिंता प्रकट कर चुकी हैं। सरकार ने भी बार-बार कहा है कि तेजाब से हमला करने वालों से कठोरता से निपटा जाना चाहिए। लेकिन कब और कैसे?
होना तो यह चाहिए कि जिस डॉक्टर ने यह हमला कराया, उसे और इन हमलावर किशोरों को कड़ी सजा मिले। उस महिला के इलाज और प्लास्टिक सर्जरी का खर्च और भारी मुआवजा भी इस डॉक्टर से वसूला जाना चाहिए। जब तक ऐसे अपराधी बचते रहेंगे, इनसे सीख लेकर और हमले होते रहेंगे। अफसोस इसका है कि औरतों को इस बर्बर पुरुष मानसिकता का शिकार उस दौर में होना पड़ रहा है, जब हम महिलाओं की सुरक्षा और चौतरफा विकास की बात लगातार कर रहे हैं। यह कैसा विकास है, जहां औरतों को सबक सिखाने के लिए दरिंदे हर नुक्कड़, चौराहे यहां तक कि घरों में भी मौजूद हैं!
साभार : http://www.amarujala.com/news/samachar/reflections/columns/not-ending-thinking-about-women-as-slave-hindi/
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