Sunday, 7 December 2014

डालर छापने की मशीन लगा रहे हैं मोदी। इस देश का सब          कुछ छपे कागज के बदले बेच देंगे ?

डालर छापने की मशीन लगा रहे हैं मोदी। इस देश का सब कुछ छपे कागज के बदले बेच देंगे?


                    इस देश को बचाना है तो मोदी का इ्स्तीफा                          चाहिए, जितनी देर होगी, उतना ही सत्यानाश…

ठगों की सरकार है यह और आधार योजना अमेरिकी खुफिया निगरानी के लिए है…

इस देश को बचाना है तो मोदी का इ्स्तीफा चाहिए, जितनी देर होगी, उतना ही सत्यानाश।  
डालर छापने की मशीन लगा रहे हैं मोदी और इस देश का सबकुछ छपे कागज के बदले बेच देंगे।
ठगों की सरकार है यह और आधार योजना अमेरिकी खुफिया निगरानी के लिए है।
ऐसा कहना है वयोवृद्ध अशोक टी जयसिंघानी का और हम उनका समर्थन करते हैं।  आप तय करें कि आपको क्या करना है।
अब पुणे में रह रहे अशोक टी जयसिंघानी वयोवृद्ध हैं और सहज भाव से लिख नहीं रहे हैं, जैसे वे जाने जाते हैं।
मेरे ब्लॉगों पर उनके आलेख पहले खूब लगते रहे हैं और इस बार भी मैंने निवेदन किया कि वे खुद लिखकर दें तो उन्होंने कहा कि मुझे लिखना है। जो शुरु से मेरे ब्लाग पढ़ते रहे हैं, उन्हें उनका लिखा याद आना चाहिए।
 उनके मुताबिक भारत पाखंडियों का देश है और विशुद्धता के नाम पर धर्म-कर्म वाले देश में गो मूत्र और गोबर के अलावा कुछ भी पवित्र नहीं हैं। उनके मुताबिकः
India: Land of Hypocrisy,  Deceit,  Poison,  Disease & Death! Only Cow’s Urine & Dung are Pure in India!! By Ashok T. Jaisinghani …
उनके कहे का संदर्भ समझने के लिए उनका यह आलेख गूगल कर लें।
जयसिंघानी जी से हमारी पहले नियमित बातचीत होती रही है। लेकिन अरसे से उनसे संवाद नहीं रहा।
हाल में जब पुणे से उनका फोन आया तो उन्हें पहचानने में मुझे देरी भी हो गयी। तब उनने छूटते ही कहा कि लैंड लाइन टेली फोन में अब किराया 399 है और बिल जो आया, उसमें फ्री कॉल पर सिर्फ दस रुपये की छूट उन्हें मिली है। मुझसे कहा कि अपना बिल चेक कर लूँ। मेरा बिल तब तक नहीं आया था लेकिन आने पर मैंने पाया कि मुफ्त कॉल की छूट लगभग खत्म कर दी गयी है।
मुझसे उन्होंने कहा कि मैं इस विषय पर जरूर लिखूँ।
मैंने कहा कि मेरे हाथ कुछ लगे तो जरूर लिखूँगा।
तब उन्होंने कहा कि कारपोरेट हितों की गुलाम है यह सरकार और जनता को ठग रही है। जो कहती है, उसका उलट सब कुछ कर रही है।
आज सुबह फिर उनका फोन आया और उन्होंने अबकी दफा कहा कि इस देश को बचाना है तो मोदी का इ्स्तीफा चाहिएजितनी देर होगीउतना ही सत्यानाश।
हम कुछ कहते , इससे पहले उनने कहा कि डॉलर छापने की मशीन लगा रहे हैं मोदी और इस देश का सब कुछ छपे कागज के बदले बेच देंगे।
उनने कहा कि दुनिया भर के संसाधन और बाजारों को अमेरिकी बिना अपना संसाधन खर्च किये बिना कुछ निवेश किये सिर्फ डालकर छापकर हड़प रहा है और मोदी अमेरिकी हरकारा हैभारत का प्रधानमंत्री नहीं।
उनने कहा कि दुनिया भर के तेल पर अमेरिकी कब्जा है जबकि वह तेल उत्पादन नहीं करता बल्कि तेल के कारोबार पर उसका वर्चस्व है।
दरअसल जयसिंघानी जी सच कह रहे हैं। अभी अमेरिका ने तेल उत्पादक देशों को फतवा जारी कर रखा है कि अंतरराष्ट्रीय तेल बाजार में कीमतें घट रही है, सो वे तुरंत तेल के उत्पादन में कटौती करें ताकि तेल की कीमतें नहीं घटें।
ओपेक देशों ने ऐसा करने से मन कर दिया तो तेल और गैस सब्सिडी काटकर कोई भारतीय व्यवस्था का कल्याण नहीं कर रहे हैं मोदी। लगातार घट रही तेल कीमत परिदृश्य में बल्कि वे अमेरिकी तेल वर्चस्व और अमेरिकी डालर वर्चस्व के कारिंदे बतौर काम कर रहे हैं।
अंबेडकर के गोल्ड स्टैंडर्ड के मुताबिक रुपी प्राब्लम सुलाझाने के लिए ब्रिटिश हुकूमत ने भारतीय रिजर्व बैंक आफ इंडिया की स्थापना की, जो अब कारपोरेट कंपनियों की पालतू बिल्ली है।
सुप्रसिद्ध अर्थशास्त्री एवं अर्थशास्त्र में नोबेल पुरस्कार विजेता डा. अमर्त्य सेन ने एक व्याख्यान में कहा कि डॉ. बी आर अंबेडकर, अर्थशास्त्र में मेरे पिता हैं।  अर्थशास्त्र के क्षेत्र में देश को दी गई उनकी सेवाओं को कभी भुलाया नहीं जा सकता।
डा. अमर्त्य सेन के मुताबिक डॉ. अंबेडकर की वर्ष 1923 में प्रकाशित थीसिस ‘द प्राब्लम ऑफ रुपी’ और ‘भारतीय मुद्रा और बैंकिंग’ का रिजर्व बैंक की स्थापना से गहरा संबंध है।
उसी  थीसिस के आधार पर डॉ. अंबेडकर ने रिजर्व बैंक की कार्य प्रणाली का खाका ‘यंग हिल्टन कमीशन’,  जिसे रॉयल कमीशन के नाम से भी जाना गया,  के सामने रखा था।
रॉयल कमीशन के अधिकांश सदस्य रिजर्व बैंक की स्थापना पर विचार करने के लिए रॉयल कमीशन की बैठक में डॉ. अंबेडकर की उक्त थीसिस को साथ में ले गए थे।
बैठक में उक्त थीसिस पर भी चर्चा हुई और परिणामस्वरूप रॉयल कमीशन की अनुशंसा पर एक अप्रैल,  1935 को रिजर्व बैंक अस्तित्व में आया।
मोदी की सरकार अब उसी रिजर्व बैंक के सभी सत्ताइस विभागों का प्रबंधन देशी विदेशी कारपोरेट घरानों का सौंप रहे हैं तो समझ जाइये कि डालर छापने की मशीनें लग चुकी हैं और कागज पर छपे डालर के चित्र के बदले हम क्या क्या खोने जा रहे हैं। जल जंगल जमीन, नागरिकता, मानवाधिकर, नागरिक अधिकार, पर्यावरण, मौसम, जीवन चक्र, जलवायु समेत सब कुछ।
शिक्षा के अधिकार से वंचित हम लोगों को संपत्ति के अधिकार से भी वंचित करके संघ परिवार खुल्लम खुल्ला डालर मनुस्मृति राज बहाल कर रहे हैं, बाबसाहेब डा.अंबेडकर को विष्णु भगवान का अवतार और हमारे तमाम रामों का हनुमान कायाकल्प करके।
बाबासाहेब का प्राब्लम आफ रुपी में औपनिवेशिक शोषण का जो नेटवर्क  है, मोदी उसी पोंजी स्कीम को लागू कर रहे हैं, अंग्रेजों से भी ज्यादा बेरहमी के साथ।
भारतीय अर्थ व्यवस्था पर तेल का सबसे ज्यादा बोझ है और राजस्व के सबसे बड़े हिस्से तेल और हथियारों पर खर्च हो जाते हैं। लेकिन विकास दर के लिए राजस्व घाटा और वित्तीय घाटा टालने के गणित में तेल और हथियारों की चर्चा कतई नहीं होती।
अमेरिकी रेटिंग एजंसियां और अमेरिका केंद्रित वैश्विक निंयत्रक अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष, विश्व बैंक, विश्व व्यापार संगठन के इशारों से जो वित्तीय और मौद्रिक नीतियां तय होती हैं, जो निजीकरण और विनिवेध, अबाध विदेशी पूंजी और उदारवादी सुधारों का सत्यानाशी विमर्श है, उसमें तेल और प्रतिरक्षा व्यय का जिक्र ही नहीं होता।
कालाधन का गोमुख भी वही है। राजनीतिक सत्ता का हिमप्रवाह भी वही।
सबूत बतौर विनिवेश आयोग और विनिवेश परिषद की रपटें देख सकते हैं।
खास बाततो यही है कि तेल और हथियार कारोबार ही अमेरिकी अर्थव्यवस्था का मूलाधार है और इसीलिए एक तरफ तो अमेरिका युद्ध-गृहयुद्ध का निर्यात करता है तो दूसरी तरफ तेल के कारोबार पर नियंत्रण के लिए इजराइल के साथ मिलकर भारतीय नस्ली रंगभेदी सत्ता समूहों को साथ लेकर मनुष्यता और प्रकृति के खिलाफ आतंकविरोधी युद्ध छेड़ा हुआ है, जो दरअसल बेदखली अभियान है।
इसी के साथ अमेरिकी हितों के खिलाफ कहीं कोई हलचल भी न हो, इस खातिर बायोमेट्रिक डिजिटल नागरिकता के जरिये दुनिया भर के तमाम देशों की नागरिकों की खुफिया निगरानी भी करता है अमेरिका।
आधार योजना इसीलिए राष्ट्रद्रोह का ही एजेंडा है, असंवैधनिक और गैर कानूनी तो वह है ही। कैश सब्सिडी गाजर के अलावा कुछ भी नहीं है।
धुरंधर कारपोरेट वकील और वित्तमंत्री अरुण जेटली के ताजा बयानों पर गौर करें।  
उन्होंने कहा कि किसी को कोयला ब्लॉक पर फैसला करने या फिर स्पेक्ट्रम अथवा प्राकृतिक संसाधनों या डीजल और गैस मूल्य पर फैसला करने के लिए सालों का इंतजार नहीं करना होता। वित्तमंत्री ने कहा कि इन फैसलों को पिछले कुछ सालों के दौरान जटिल किया गया,  लेकिन नई सरकार ने समय खराब न करते हुए उन पर निर्णय किया। जेटली ने कहा कि भारत एक महत्वपूर्ण चरण में हैं। जहां हमें अपने धैर्य को नहीं खोना चाहिए। वैश्विक निवेशक भारत की ओर नई रुचि के साथ देख रहे हैं। सत्ता में आने के बाद नरेंद्र मोदी सरकार ने डीजल कीमतों को नियंत्रणमुक्त किया है।
धनी लोगों को मिल रहे सब्सिडी के लाभ में कटौती का समय अब नजदीक आता दिख रहा है। वित्तमंत्री अरुण जेटली ने समाज में ऐसे वर्ग के लोगों को बिना मात्रा निर्धारित किए ही सब्सिडी का लाभ देने पर सवाल उठाया है जिनकी पहचान नहीं हो सकती है। हालांकि इसके साथ ही उनका मानना है कि एक बड़े तबके के लिए कुछ न कुछ सब्सिडी जारी रखा जाना जरूरी है,  क्योंकि देश में अब भी बड़ी संख्या में लोग गरीब हैं और उन्हें सरकार की मदद की जरूरत है।
जेटली ने कहा था,  भारत को अगला महत्वपूर्ण निर्णय करना है कि क्या मेरी तरह के लोग एलपीजी सब्सिडी लेने के हकदार हैं। एलपीजी उपभोक्ताओं को वर्तमान में 12 सिलेंडर सब्सिडी दर पर मिलते हैं और इसके बाद जरूरत पड़ने पर उन्हें बाजार दर पर सिलेंडर खरीदना होता है।
वित्तमंत्री अरुण जेटली ने सरकारी बैंकों को रुकी हुई परियोजनाओं को कर्ज मुहैया कराने के लिए कहा है। साथ ही उन्होंने उम्मीद जताई कि जैसे-जैसे अर्थव्यवस्था बढ़ेगी बैंकों के बुरे ऋण में कमी आती जाएगी।
त्रैमासिक समीक्षा बैठक के बाद जेटली ने पत्रकारों को बताया,  ”हमने बैंकों को विभिन्न परियोजनाओं के लिए आर्थिक मदद देने के लिए कहा है ताकि बंद पड़ी ये परियोजनाएं ऋण लेकर बड़े पैमाने पर काम शुरू कर सकें। जाहिर है,  बैंक अपनी जिम्मेदारियों के प्रति जागरूक हैं।”
उन्होंने उम्मीद जताई कि बुरे ऋण या गैर निष्पादित परिसंपत्तियों (एनपीए) के अनुपात में अर्थव्यवस्था के बढ़ने के साथ कमी आएगी।
उन्होंने कहा,  ”साथ ही इस बात पर भी चर्चा की गई है कि एनपीए कम करने के लिए क्या सक्रिय कदम उठाए जाने की जरूरत है।”
उन्होंने सरकारी बैंकों और वित्तीय संस्थाओं के प्रमुखों को साथ ही कहा कि ऋण देने के प्रस्तावों का मूल्यांकन बिना किसी भय अथवा पक्षपात के होना चाहिए।
सकल अग्रिम कर और सकल एनपीए का अनुपात इस साल की सितंबर तिमाही में 5.31 फीसदी तक चला गया है जबकि बीते वित्त वर्ष की इसी तिमाही में यह 4.82 फीसदी था।
इसीसिलिसिले में बाबासाहेब डा.अंबेडकर के शोध प्राब्लम आफ रुपी की प्रासंगिकता पर भी गौर करें कि बाबा साहेब ने औपनिवेशिक भारत में अंग्रेजों की ओर से सिर्फ रुपये के नोट छापकर उसके एवज में भारत की संपत्तियां समुद्र पार लंदन भेजने की हरकतों पर रोक लगाने के लिए कहा था कि जितना चाहे नोट छापें, लेकिन उस नोट की कीमत के हिसाब से बराबर सोना बाजू में रखना होगा।
इसी शोध के आधार पर न केवल स्वर्ण मानक अपनाया गया बल्कि बाबासाहेब की सिफारिशें लागू करने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक की नींव भी डाली गयीं।
आजाद भारत के भारतीय गोरे शासकों ने अश्वेत अस्पृश्य बहुसंख्य जनगण की संपत्तियां लूटने के लिहाज से डालर मानक अपनाकर फिर वही नोट छापने की परंपरा डाली गयी है और जो अबाध विदेशी पूंजी है, वह कागज के टुकड़ों के अलावा कुछ भी नहीं है और न उसकी कोई जमानत है। डालर गयो तो उसके बदले में कुछ नहीं मिलने वाला।
विदेशी प्रत्यक्ष निवेश का मतलब है कि डालर छापने की हजारों लाखों मशीनें एटीएम की तरह जहां-तहां हर क्षेत्र में लग जायेंगी, जैसे अंबानी समूह डालर के भव भारत का सारा तेल संसाधन कब्जाये बैठा है और तेल गैस कीमतों पर अंबानी समूह के मार्फत दरअसल डालर का वर्चस्व ही है, जो डालर कागज के नोट के अलावा कुछ भी नहीं है।
दूसरेविश्व युद्ध में जर्मनी की पराजय के बाद मार्कमानक देशों का क्या हश्र हुआ तो याद करें तो समझेंगे कि विदेशी प्रत्यक्ष निवेश और विदेशी पूंजी के बहाने मुफ्त में देश बेचने का कार्यक्रम है नवउदारवाद।
इराक के सद्दाम हुसैन ने तेल कागज के इन टुकडों के एवज में देने से इंकार कर दिया और डालर के बदले यूरो में तेल के भुगतान की पेशकश की तो उसे रावण बनाकर अमेरिकी राम ने मार डाला जो अब भारत के भी राम हैं और यही अमेरिकापरस्ती ग्लोबल हिंदुत्व है, ग्लोबल हिंदू साम्राज्यवाद भी है और रामराज्य भी है। इसे जितनी जल्दी समझें, उतना ही बेहतर। इसी रामायण के लिए भारत देश ही नहीं, सारा एशिया अब महाभारत है।
डालर वर्चस्व का महाभारत और उसके कन्हा रंगरसिया कौन है, बूझै सिर्फ सुजान।
पहले जर्मनी के पतन बजरिये मार्क और फिर सोवियत संघ के पतन बजरिये रूबल के अवमूल्यन से ही मुक्त बाजार की यह व्यवस्था बनी है और फिर नये सिरे से रुपये की समस्या पर सोचने की जरूरत है वरना यह डालर पोटेशियम सायनाइड के संक्रमण से हवाओं और पानियों, जमीन और आसमान के जहरीला बन जाने के आसार हैं।
O- पलाश विश्वास
साभार : http://www.hastakshep.com/intervention-hastakshep/issue/2014/12/07 डालर-छापने-की-मशीन-लगा-रहे

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