इस व्यवस्था मे दलित उत्पीड़न बढ़ा है और अल्पसंख्यकों का

इस देश के शासवर्ग का चरित्र जनता के साथ धोखाधड़ी का है- प्रो. आनंद तेलतुमड़े
छठे पटना फिल्मोत्सव प्रतिरोध का सिनेमा की शुरुआत
पटना। ‘बोल कि लब आजाद हैं तेरे’ इस आह्वान के साथ कालीदास रंगालय में छठे पटना फिल्मोत्सव प्रतिरोध का सिनेमा उद्घाटन हुआ। यह त्रिदिवसीय फिल्मोत्सव प्रसिद्ध चित्रकार जैनुल आबेदीन, कवि नवारुण भट्टाचार्य, गायिका बेगम अख्तर, अदाकारा जोहरा सहगल और कथाकार मधुकर सिंह की स्मृति को समर्पित है।
फिल्मोत्सव का उद्घाटन महाराष्ट्र से पटना आए चर्चित राजनीतिक विश्लेषक, लेखक और सोशल एक्टिविस्ट प्रो. आनंद तेलतुमड़े ने किया।
आनंद तेलतुमड़े ने कहा कि आज विकास का मतलब आदिवासियों, दलितों को उनकी जमीन से उखाड़ देना और कामगारों के अधिकारों को खत्म करना हो गया है। जो भी शासकवर्ग के इस विकास मॉडल का विरोध करता है या जो उत्पीड़ित जनता की बात करता है, उसे नक्सलवादी घोषित कर दिया जाता है। आज दलित महिलाओ पर बलात्कार की संख्या दुगुनी हो गई है। साल भर मे करीब चालीस हजार दलित उत्पीड़न की घटनाएं इस देश में होती हैं। महाराष्ट्र में एक दलित परिवार को टुकड़े-टुकड़े कर दिया गया, बिहार में दलितों की हत्या करने वालों की हाईकोर्ट से रिहाई हो गई। और जो अल्पसंख्यक हैं, उनका तो इस देश में जीना हराम हो गया है। दिल्ली में चर्च जला दिया गया। इशरत जहां और उनके साथियों की फर्जी मुठभेड़ में हत्या हो या मालेगांव में हिंदूत्ववादियों द्वारा मुसलमानों का वेष धारण करके की गई कार्रवाई, ये मुसलमानों को आतंकवादी बताने की साजिश का नमूना है। उन्होंने कहा कि इसमें आरएसएस-बीजेपी की तो भूमिका है ही, कांग्रेस भी कम दोषी नहीं है, बल्कि भाजपा के उत्थान के लिए कांग्रेस ही जिम्मेवार है।
प्रो. तेलतुमड़े ने कहा कि शुरू से ही इस देश के शासकवर्ग का चरित्र बेहद खतरनाक था। औपनिवेशिक शासकों ने जिनको सत्ता सौंपी, उनका इतिहास जनता के साथ धोखाधड़ी का इतिहास है। उभरते हुए पूँजीपति वर्ग न केवल संविधान निर्माण के दौरान धोखाधड़ी की, बल्कि नेहरू ने पंचवर्षीय योजना और समाजवाद का नाम लेकर पूँजीपतियों के हित में ही काम किया। सन् 1944 में देश के आठ पूंजीपतियों ने निवेश के लिए जो एक पंद्रह वर्षीय योजना बनाई थी, पंचवर्षीय योजना का प्रारूप वहीं से लिया गया था, वह सोवियत रूस की नकल नहीं था। देश में जो भूमि सुधार हुए, उसका मकसद भी भूमिहीन मेहनतकश किसानों के बीच जमीन को वितरित करना नहीं था, बल्कि उसका मकसद अमीर किसानों को पैदा करना था।
अस्सी और नब्बे के दशक में नवउदारवादी भूमंडलीकरण की नीतियों की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि इसने समाज से व्यक्ति को अलहदा करके छोड़ दिया है। इसने खुद का स्वार्थ देखने और बाकी सबकुछ को बेमानी समझने के फलसफे को बढ़ावा दिया है। इसने जनता के प्रतिरोधी ताकत के प्रति आस्था को कमजोर किया है। हालांकि आज भी जनता में प्रतिरोध की भावनाएं जिंदा हैं। बेशक शासकवर्ग के प्रोपगैंडा को काउंटर करने लायक संसाधन प्रतिरोधी संस्कृतिकर्म में लगे लोगों के पास नहीं है, पर भी बहुत सारे लोग हैं, जिनकी इकट्ठी संख्या बहुत हो सकती है। ये अगर और रचनात्मक तरीके से जनता तक पहुंचे तो आज के माहौल को बदला जा सकता है।
दिन-रात टीवी और मुख्यधारा के सिनेमा के जरिए जनता के बीच प्रचारित आत्मकेंद्रित और सांप्रदायिक जीवन मूल्यों की चर्चा करते हुए प्रो. तेलतुमड़े ने कहा कि जो ऑडियो-विजुअल माध्यम है, वह काफी पावरफुल माध्यम है, उसके जरिए ज्यादा से ज्यादा लोगों तक जाना होगा। रामायण और महाभारत सीरियल का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि इनसे भी हिंदुत्व का असर बढ़ा। प्रतिरोध का सिनेमा साल में एक ही दिन नहीं, बल्कि प्रतिदिन लोगों को दिखाना होगा।
माइकल मूर की फिल्म ‘फॉरेनहाईट 9/11′ की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि उसे देखने के लिए उन्हें लाइन में लगकर टिकट लेना पड़ा। पूरी फिल्म में दर्शकों का जबरदस्त रिस्पॉन्स देखने को मिला। उन्होंने बताया कि माइकल मूर का कहना है कि इस तरह की फिल्म को डाक्यूमेंट्री फिल्म कहना बंद होना चाहिए। वे चाहते हैं कि फिल्म से दर्शक अवसाद लेकर जाने के बजाए आक्रोश लेकर जाए। प्रो. तेलतुमड़े ने कहा कि हमें सामान्य दस्तावेजीकरण से आगे बढ़ना होगा। दर्शकों को आकर्षित करने के लिए रचनात्मक बातें इन फिल्मों में डालनी होंगी। उन्होंने महान फ़िल्मकार गोदार के हवाले से कहा- don’t make political film, make film politically.
प्रो. तेलतुमड़े ने क्रांतिकारी कवि गोरख पांडेय को लाल सलाम करते हुए उनके और जन संस्कृति मंच के साथ अपने पुराने जुड़ाव को याद किया। उन्होंने कहा कि पिछले चालीस वर्षों से उनका प्रतिरोधी जनांदोलनों से गहरा संबंध रहा है।
डॉ. सत्यजीत ने आयोजन समिति की ओर से उद्घाटन सत्र में स्वागत वक्तव्य दिया। मंच पर कवि आलोक धन्वा, डा. मीरा मिश्रा, प्रीति सिन्हा, कवयित्री प्रतिभा, रंग निर्देशक कुणाल, पत्रकार मणिकांत ठाकुर, कथाकार अशोक, प्रो. भारती एस कुमार, पत्रकार अग्निपुष्प, निवेदिता झा, दयाशंकर राय, अवधेश प्रीत, कवि अरुण शाद्वल, कथाकार अशोक, प्रतिरोध के सिनेमा के राष्ट्रीय संयोजक संजय जोशी आदि मौजूद थे। संचालन संतोष झा ने किया।
इस सत्र में डा. मीरा मिश्रा ने फिल्मोत्सव की स्मारिका का लोकार्पण किया. स्मारिका में बेगम अख्तर, जोहरा सहगल, जैनुल आबेदीन, नबारुण भट्टाचार्य और मधुकर सिंह पर स्मृति लेख हैं। ‘तकनालाजी के नए दौर में सिनेमा देखने-दिखाने के नए तरीके और उनके मायने’ नामक संजय जोशी का एक महत्वपूर्ण लेख भी इसमें है। ‘फंड्री’ और ‘आँखों देखी’ फिल्मों पर अतुल और मिहिर पंड्या को दो लेख भी इसको संग्रहणीय बनाते हैं।
पटना। ‘बोल कि लब आजाद हैं तेरे’ इस आह्वान के साथ कालीदास रंगालय में छठे पटना फिल्मोत्सव प्रतिरोध का सिनेमा उद्घाटन हुआ। यह त्रिदिवसीय फिल्मोत्सव प्रसिद्ध चित्रकार जैनुल आबेदीन, कवि नवारुण भट्टाचार्य, गायिका बेगम अख्तर, अदाकारा जोहरा सहगल और कथाकार मधुकर सिंह की स्मृति को समर्पित है।
फिल्मोत्सव का उद्घाटन महाराष्ट्र से पटना आए चर्चित राजनीतिक विश्लेषक, लेखक और सोशल एक्टिविस्ट प्रो. आनंद तेलतुमड़े ने किया।
आनंद तेलतुमड़े ने कहा कि आज विकास का मतलब आदिवासियों, दलितों को उनकी जमीन से उखाड़ देना और कामगारों के अधिकारों को खत्म करना हो गया है। जो भी शासकवर्ग के इस विकास मॉडल का विरोध करता है या जो उत्पीड़ित जनता की बात करता है, उसे नक्सलवादी घोषित कर दिया जाता है। आज दलित महिलाओ पर बलात्कार की संख्या दुगुनी हो गई है। साल भर मे करीब चालीस हजार दलित उत्पीड़न की घटनाएं इस देश में होती हैं। महाराष्ट्र में एक दलित परिवार को टुकड़े-टुकड़े कर दिया गया, बिहार में दलितों की हत्या करने वालों की हाईकोर्ट से रिहाई हो गई। और जो अल्पसंख्यक हैं, उनका तो इस देश में जीना हराम हो गया है। दिल्ली में चर्च जला दिया गया। इशरत जहां और उनके साथियों की फर्जी मुठभेड़ में हत्या हो या मालेगांव में हिंदूत्ववादियों द्वारा मुसलमानों का वेष धारण करके की गई कार्रवाई, ये मुसलमानों को आतंकवादी बताने की साजिश का नमूना है। उन्होंने कहा कि इसमें आरएसएस-बीजेपी की तो भूमिका है ही, कांग्रेस भी कम दोषी नहीं है, बल्कि भाजपा के उत्थान के लिए कांग्रेस ही जिम्मेवार है।
प्रो. तेलतुमड़े ने कहा कि शुरू से ही इस देश के शासकवर्ग का चरित्र बेहद खतरनाक था। औपनिवेशिक शासकों ने जिनको सत्ता सौंपी, उनका इतिहास जनता के साथ धोखाधड़ी का इतिहास है। उभरते हुए पूँजीपति वर्ग न केवल संविधान निर्माण के दौरान धोखाधड़ी की, बल्कि नेहरू ने पंचवर्षीय योजना और समाजवाद का नाम लेकर पूँजीपतियों के हित में ही काम किया। सन् 1944 में देश के आठ पूंजीपतियों ने निवेश के लिए जो एक पंद्रह वर्षीय योजना बनाई थी, पंचवर्षीय योजना का प्रारूप वहीं से लिया गया था, वह सोवियत रूस की नकल नहीं था। देश में जो भूमि सुधार हुए, उसका मकसद भी भूमिहीन मेहनतकश किसानों के बीच जमीन को वितरित करना नहीं था, बल्कि उसका मकसद अमीर किसानों को पैदा करना था।
अस्सी और नब्बे के दशक में नवउदारवादी भूमंडलीकरण की नीतियों की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि इसने समाज से व्यक्ति को अलहदा करके छोड़ दिया है। इसने खुद का स्वार्थ देखने और बाकी सबकुछ को बेमानी समझने के फलसफे को बढ़ावा दिया है। इसने जनता के प्रतिरोधी ताकत के प्रति आस्था को कमजोर किया है। हालांकि आज भी जनता में प्रतिरोध की भावनाएं जिंदा हैं। बेशक शासकवर्ग के प्रोपगैंडा को काउंटर करने लायक संसाधन प्रतिरोधी संस्कृतिकर्म में लगे लोगों के पास नहीं है, पर भी बहुत सारे लोग हैं, जिनकी इकट्ठी संख्या बहुत हो सकती है। ये अगर और रचनात्मक तरीके से जनता तक पहुंचे तो आज के माहौल को बदला जा सकता है।
दिन-रात टीवी और मुख्यधारा के सिनेमा के जरिए जनता के बीच प्रचारित आत्मकेंद्रित और सांप्रदायिक जीवन मूल्यों की चर्चा करते हुए प्रो. तेलतुमड़े ने कहा कि जो ऑडियो-विजुअल माध्यम है, वह काफी पावरफुल माध्यम है, उसके जरिए ज्यादा से ज्यादा लोगों तक जाना होगा। रामायण और महाभारत सीरियल का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि इनसे भी हिंदुत्व का असर बढ़ा। प्रतिरोध का सिनेमा साल में एक ही दिन नहीं, बल्कि प्रतिदिन लोगों को दिखाना होगा।
माइकल मूर की फिल्म ‘फॉरेनहाईट 9/11′ की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि उसे देखने के लिए उन्हें लाइन में लगकर टिकट लेना पड़ा। पूरी फिल्म में दर्शकों का जबरदस्त रिस्पॉन्स देखने को मिला। उन्होंने बताया कि माइकल मूर का कहना है कि इस तरह की फिल्म को डाक्यूमेंट्री फिल्म कहना बंद होना चाहिए। वे चाहते हैं कि फिल्म से दर्शक अवसाद लेकर जाने के बजाए आक्रोश लेकर जाए। प्रो. तेलतुमड़े ने कहा कि हमें सामान्य दस्तावेजीकरण से आगे बढ़ना होगा। दर्शकों को आकर्षित करने के लिए रचनात्मक बातें इन फिल्मों में डालनी होंगी। उन्होंने महान फ़िल्मकार गोदार के हवाले से कहा- don’t make political film, make film politically.
प्रो. तेलतुमड़े ने क्रांतिकारी कवि गोरख पांडेय को लाल सलाम करते हुए उनके और जन संस्कृति मंच के साथ अपने पुराने जुड़ाव को याद किया। उन्होंने कहा कि पिछले चालीस वर्षों से उनका प्रतिरोधी जनांदोलनों से गहरा संबंध रहा है।
डॉ. सत्यजीत ने आयोजन समिति की ओर से उद्घाटन सत्र में स्वागत वक्तव्य दिया। मंच पर कवि आलोक धन्वा, डा. मीरा मिश्रा, प्रीति सिन्हा, कवयित्री प्रतिभा, रंग निर्देशक कुणाल, पत्रकार मणिकांत ठाकुर, कथाकार अशोक, प्रो. भारती एस कुमार, पत्रकार अग्निपुष्प, निवेदिता झा, दयाशंकर राय, अवधेश प्रीत, कवि अरुण शाद्वल, कथाकार अशोक, प्रतिरोध के सिनेमा के राष्ट्रीय संयोजक संजय जोशी आदि मौजूद थे। संचालन संतोष झा ने किया।
साभार : http://www.hastakshep.com/hindi-news/film-tv/2014/12/07 पटना-फिल्मोत्सव-प्रतिरोध
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