Friday, 19 December 2014

बढ़ रहा है भारत के इतिहास और संस्कृति के विकृतिकरण तथा साम्प्रदायीकरण का खतरा

बढ़ रहा है भारत के इतिहास और संस्कृति के विकृतिकरण तथा साम्प्रदायीकरण का खतरा
  अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आज अमरीका के नेतृत्व में साम्राज्यवादी ताकतें, दुनिया में हर जगह सांप्रदायिक, कट्टरपंथी धुर दक्षिणपंथी ताकतों, जिसमें सैनिक शासन भी शामिल है, को हर तरीके से प्रोत्साहित कर रही हैं। वह चाहे तुर्की, इजरायल, म्यांमार, पाकिस्तान, भारत समेत अफ्रीका, एशिया और दक्षिण अमरीका की सरकारें हों या अमरीका द्वारा पैदा किए गए तालिबान, अलकायदा या आईएसआईएस हों। अमरीकी व यूरोपीय महाशक्तियों की रणनीति के अनुसार ही पूरी दुनिया में पिछले तीन दशकों से जनविरोधी भूमण्डलीकृत-नवउदारवाद को थोपा गया है। विगत ढाई दशक का नव-उदारवादीराज अगर हमारी शिक्षा और संस्कृति के सारे जनवादी और प्रगतिशील तत्व एवं मूल्यों को बरबाद करने पर तुला हुआ है तो केन्द्र में नई सरकार के आगमन ने इन क्षेत्रों में व्यापारीकरण एवं साम्प्रदायीकरण के विस्तार को और तेज किया है। आज देश की हालिया स्थिति ये है कि आर.एस.एस. के एजेंडा पर आधारित हिन्दू राष्ट्र की अवधारणा को व्यापक क्षेत्र में फैलाया जा रहा है। अगर पूर्व में बीजेपी के नेतृत्व वाली एन.डी.ए. सरकार के समय शिक्षा का साम्प्रदायीकरण, सरस्वती शिशु मंदिर एवं आर.एस.एस. की अन्य स्कूलों के विस्तार के जरिये किया गया था, तो वर्तमान में समग्र शिक्षा व्यवस्था का खुला साम्प्रदायीकरण बड़े जोर-शोर से किया जा रहा है। यह आक्रामक हिन्दुत्व अन्य धार्मिक सम्प्रदायों को भी शिक्षा और संस्कृति के व्यापारीकरण एवं साम्प्रदायीकरण के व्यापक प्रयास में अपनी-अपनी भूमिका अदा करने के लिए प्रोत्साहित कर रहा है। नई सरकार के लिए भारत का आधुनिकीकरण का मतलब है सब कुछ हिन्दुत्व के अनुसार ही होना, भले उसके लिए समाज में निहित वैज्ञानिक तथा वैचारिक मानसिकता को बलिदान देना पडे़।
                जनता से ‘अच्छे दिन’ और ‘सुशासन’ का वायदा करते हुए मोदी सरकार सत्ता में आई थी। लेकिन पिछले 7 महीनों के भीतर ही वह इन वायदों से उलट गई है और जिन कॉरपोरेट घरानों ने इनके चुनाव प्रचार अभियान में पैसा लगाया था और यह सरकार जिनके हितों का प्रतिनिधित्व करती है उन्हें खुश करने के लिए नव-उदार नीतियों को ताबड़तोड़ ढंग से लागू कर रही है। स्वाभाविक रूप से, वर्तमान शासन के खिलाफ पहले जो लोग मद्धिम स्वर में बोल रहे थे, अब वे ऊँची आवाज में बोलने लगे हैं। जनता लगातार बढ़ती महंगाई, बेरोजगारी और सभी क्षेत्रों में जारी भ्रष्टाचार से कुपित है। कॉरपोरेट पैसे की गर्मी से फुलाये गये मोदी गुब्बारे में छेद नजर आने लगा है। इस सरकार ने अपने पहले बजट भाषण में विदेशी निवेश को आमंत्रण देने के साथ-साथ निजीकरण और उदारीकरण को तेज करने का रास्ता अपनाया है। इस रास्ते पर चलने से आर्थिक संकट से जूझ रही जनता को अपने दुर्दिनों से निजात नहीं मिलेगी, बल्कि उनका जीवन बद-से- बदतर ही होगा। इसलिए, यह तय है कि जनता और भी बड़ी संख्या में सड़कों पर उतरेगी और विभिन्न रूपों में अपना आक्रोश प्रकट करेगी।
और यह बात भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) को भी मालूम है। इसलिए, संघ परिवार ने कई स्थानों पर साम्प्रदायिक कलह को हवा देना शुरू कर दिया है। छोटी-से-छोटी बात को अफवाह में बदलकर सभी क्षेत्रों में साम्प्रदायिकता फैलायी जा रही है, ताकि आर्थिक बीमारियों और बढ़ती दरिद्रता से जनता का ध्यान अलग हटाया जा सके। जिस तरह अटल बिहारी बाजपेई के नेतृत्व में राजग (एनडीए) सरकार के दिनों में इतिहास और संस्कृति को हिन्दुत्ववादी नजरिये से बदलने का प्रयास किया गया था, आज उसे और भी तीव्र गति से दुहराया जा रहा है। भाजपा के नेता और संघ परिवार अपने खेमे के बुद्धिजीवियों को लेकर इतिहास और संस्कृति को सचेत रूप से विकृत करने के प्रयास में जुट गये हैं। संघ परिवार से लम्बे समय से जुड़े लोगों को उठा-उठाकर विभिन्न संवेदनशील क्षेत्रों का कार्यभार सौंपा जा रहा है। इसका एक उदाहरण यह है कि भारतीय इतिहास शोध परिषद के अध्यक्ष पद पर वाई. सुदर्शन राव को बैठाया जाना, जिनके विचार संघ परिवार से मेल खाते हैं। वे ऐसे व्यक्ति हैं जो भारत में जाति प्रथा को सामाजिक बुराई के रूप में नहीं देखते हैं।
                यह सांप्रदायिक आक्रमण सांस्कृतिक तथा वैचारिक क्षेत्र में अधिक दिखाई दे रहा है। धुर दक्षिणपंथी अपने विचारों का व्यावसायीकरण एवं साम्प्रदायीकरण किये बिना नहीं रह सकते। इतिहास को भी तोड़-मरोड़ कर पुनः व्याख्या करने का प्रयास जारी है। इस प्रक्रिया में स्थापित तथ्यों की विकृति भी की जा रहा है। हिन्दू धार्मिक ग्रंथों को जबरदस्ती स्कूल तथा कॉलेज के पाठ्यक्रम में शामिल करवाया जा रहा है। कट्टरपंथी धार्मिक अवधारणा एवं आचार-अनुष्ठान आदि को नवजीवन मिला है। धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा दिया जा रहा है। ‘‘लव-जिहाद‘‘ आदि कृत्रिम सांप्रदायिक मिथक के जरिये उत्तर प्रदेश आदि राज्यों में विभेद फैलाकर सांप्रदायिक दंगों को उकसाया जा रहा है। कट्टर सांप्रदायिक ताकतें, भारत की गंगा-जमनी तहजीब और बहुलतावादी संस्कृति को खत्म करना चाहती हैं। और वैचारिक/सांस्कृतिक जगत में इन हमलों के जरिए वह शासक वर्ग द्वारा बहुराष्ट्रीय कंपनियों व बड़े कॉर्पोरेट घरानों द्वारा आम जनता पर किए जा रहे ताबड़तोड़ हमलों से जनता का ध्यान हटाना चाहती हैं।
आर.एस.एस. की अखिल भारतीय चिंतन बैठक में कहा जाता है कि जैन, सिक्ख और बौद्ध को संघ अल्पसंख्यक नहीं मानता, ये सब हिन्दू ही हैं। विहिप नेता प्रवीण तोगडि़या खुलेआम चेतावनी देते हुए ‘‘वे गुजरात भूल गए हैं लेकिन उन्हें मुजफ्फर नगर तो याद होगा‘‘ कहकर सांप्रदायिक माहौल को बिगाड़ने की कोशिश करते हैं। सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति ए.आर. दवे कहते हैं कि वे अगर तानाशाह होते तो पहली कक्षा में रामायण, महाभारत, गीता का अध्ययन अनिवार्य कर देते। भारत में हिन्दुत्व और एक काल्पनिक संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए भयानक आक्रामक अंदाज में मीडिया से लेकर अदालत तक अभियान चला रहे दीनानाथ बत्रा देश में अज्ञान बिखरने में लग गए हैं। गुजरात में अपनी सफलता से प्रेरित होकर वे पूरे देश में ‘‘शिक्षा के भारतीयकरण‘‘ में जोर-शोर से जुटे हैं। उन्हें संघ और भाजपा के नेता राम माधव ‘‘अच्छा काम कर रहे हैं‘‘ कहकर प्रमाणपत्र भी दे रहे हैं। सुब्रमण्यम स्वामी ने आर.एस.एस. के आनुषंगिक संगठन अखिल भारतीय संकलन योजना के कार्यक्रम में कहा है कि बिपनचन्द्र, रोमिला थापर जैसे धर्मनिरपेक्ष इतिहासकारों की किताबें जला दी जानी चाहिए।
                सामग्रिक रूप से यह कहा जा सकता है कि देश में मौजूद धर्मनिरपेक्ष चिंतन तथा मूल्यों को पूरी तरह नष्ट करके इन्हें एक धार्मिक राष्ट्र बनाने के लिए भरसक प्रयास जारी हैं।
                वास्तविक स्थिति और भी गंभीर है क्योंकि कांग्रेस समेत समस्त मुख्यधारा के राजनैतिक दल यद्यपि संघ परिवार एवं उनके निर्देशित मोदी सरकार के उपरोक्त साम्प्रदायीकरण के प्रयास की आलोचना करते हैं, तथापि ये लोग धर्म को राजनीति से अलग करने के बजाय खुद धार्मिक तुष्टिकरण तथा जातिवादी प्रचार के रास्ते को अपनाते हैं। बीजेपी इस छद्म-धर्मनिरपेक्षता का मखौल उड़ा के अपनी हिन्दू कट्टरवादी अभियान को आगे बढ़ा रही है। वे हिन्दुत्व को राष्ट्रवाद तथा देश-प्रेम के पर्याय के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं। मीडिया एवं फिल्म आदि के जरिए ‘‘मुसलमानो से नफ़रत, पाकिस्तान से नफरत!‘‘ सरीखे नारों को तूल दिया जा रहा है। निःसंदेह ये नारे उनके नवउदारवादी आर्थिक एजेंडा को छुपाकर मध्यम वर्ग को अपने तबके में शामिल करने में बहुत प्रभावी हैं।
                एक तरफ साम्रज्यवादियों द्वारा ‘‘आतंकवाद के खिलाफ युद्ध‘‘ के नाम पर इस्लाम-विरोधी धार्मिक कट्टरवादी आक्रामकता को बढ़ावा दिया जा रहा है तो दूसरी तरफ इन से प्रोत्साहित होकर जनता को लूटने और बरगलाने वाले ढोंगी/चमत्कारिक बाबाओं/संतो का बोलबाला बढ़ रहा है। इस प्रकार जनता के सरल विश्वासी तबके क्रमशः उनकी तरफ झुक रहे हैं।
                दरअसल साम्प्रदायिक-फासिस्ट विचारधारा के अनवरत फैलाव में मुख्य रोड़ा भारत का इतिहास लेखन रहा है। भारत में जो इतिहास लेखन हुआ है, उससे उन मान्यताओं की पुष्टि नहीं होती है जो कि आर.एस.एस. व उसके अनुषांगिक संगठन लोगों के जेहन में उतारने की कोशिश में लगे हुए हैं। सच तो ये है कि साम्प्रदायिक, फासिस्ट विचारधारा उस महान वाद-विवाद-संवाद की परम्परा की विरोधी हैं जिसके सहारे मानव सभ्यता आगे बढ़ी है। इस विचारधारा के तौर-तरीके के मूल में हिंसक मनोवृत्ति है। विरोधी को ‘शांत‘ कर देना, उसे दृश्य से ‘हटा देना‘ देश और विचारों को ‘कुचल देना‘ जैसे हर देश में साम्प्रदायिक फासिस्ट विचारधारा अपनाती है। साथ ही धर्म के आधार पर किसी एक बिरादरी को ‘दुश्मन‘ घोषित करने का दुष्प्रचार फैलाना उनकी विचारधारात्मक मजबूरी है।
                अतः परिस्थिति की मांग है कि समस्त प्रगतिशील धर्मनिरपेक्ष तथा जनवादी ताकतें, विशेष रूप से लेखक, कलाकार, शिक्षाविद् एवं सांस्कृतिक कर्मी, लामबंद होकर कट्टर हिन्दुत्ववादी एजेंडे की हिंसक, असहिष्णु एवं आक्रामक चेहरे को उजागर करें। उस एजेंडे को लागू करने वाली सरकार के प्रयास को असफल बनाने के लिए प्रबल प्रतिरोध की तैयारी करें एवं जनता के मध्य धर्मनिरपेक्ष प्रगतिशील मूल्यों तथा वैज्ञानिक चेतना की रक्षा एवं प्रचार-प्रसार करें।
O-     तुहिन देब

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तुहिन देबलेखक रायपुर स्थित स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। 
साभार : http://www.hastakshep.com/intervention-hastakshep/%E0%A4%AC%E0%A4%B9%E0%A4%B8/2014/12/18/%E0%A4%87%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%B8-%E0%A4%94%E0%A4%B0-%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A5%83%E0%A4%A4%E0%A4%BF-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%95?utm_source=feedburner&utm_medium=feed&utm_campaign=Feed%3A+Hastakshepcom+%28Hastakshep.com%29

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