‘घर वापसी’ नहीं दंगों की वापसी का प्रयास है यह

‘घर वापसी’ नहीं दंगों की वापसी का प्रयास है यह
योगी के बाद साध्वी और संत आए आग लगाने
लखनऊ। भारतीय जनता पार्टी ने लोकसभा चुनाव से पहले एक प्रयोग किया जो सफल रहा। अब उत्तर प्रदेश में विधान सभा चुनाव से पहले इसी प्रयोग को दोहराने का प्रयास शुरू हो चुका है। राजनीति में ऐसे प्रयोग पहले भी हुए हैं और आगे भी होते रहेंगे। पर बीते लोकसभा चुनाव जैसी सफलता पहली बार मिली इसलिए इसे दोहराया जा रहा है। बहुत ही भौंडे ढंग से। एक साध्वी है, जो बोली तो आग लग गई फिर माफ़ी मांगी। एक संत पुरुष है साक्षी महाराज उनकी संतई के किस्से एक नहीं अनेक हैं। अब वे भी नए विचारों के साथ सामने आ गए हैं। इनसे पहले पूर्वांचल में हिंदुत्व की नर्सरी चलने वाले योगी आदित्यनाथ ‘लव जेहाद’ के साथ उप चुनाव में मैदान में उतरे थे, पर प्रयोग नाकाम हुआ तो वापस चले गए और भाजपा फिर विकास के एजेंडा पर लौट आई। पर रह-रहकर विकास के साथ हिंदुत्व जाग जाता है। वजह आने वाले कुछ राज्यों के चुनाव हैं, जिसमें उत्तर प्रदेश और बिहार मुख्य है।
सभी जानते हैं कि खाली विकास से चुनाव नहीं जीता जा सकता उसके लिए धर्म और जाति का समीकरण जरूरी है। नरेंद्र मोदी इस खेल में कामयाब रहे जिन्होंने विकास और हिंदुत्व का गजब का समीकरण सामने रखा और विरोधी चित हो गए। मोदी ने उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह पर जब तंज कसते हुए कहा था ‘नेताजी गुजरात बनाने के लिए छप्पन इंच का सीना चाहिए, तब पूर्वांचल का एक तबका बमबम हो गया था। सभा में ही एक ने कहा था, ये है अपना मोदी जिसने मुल्ला मुलायम को चित कर दिया। इससे साफ़ था कि मोदी विकास के साथ हिंदुत्व का भी एक मजबूत चेहरा थे।
कैसा विकास, किनका विकास और कौन सा विकास, यह अलग बहस का मुद्दा है। विकास के दो माडल सामने रखे मोदी ने। एक गुजरात का जिसके बारे में लोग सुनते रहे हैं मीडिया आदि के जरिए, दूसरे उत्तर प्रदेश का एक खाका उन्होंने खींचा। पूर्वांचल में सड़क बिजली पानी का मुद्दा कांग्रेस, भाजपा बसपा और सपा सभी के राज्य में एक ही जैसा रहा है पर ठीकरा अखिलेश यादव सरकार पर फूटा। क्योंकि वे रोज जाती हुई बिजली ज्यादा देखते रहे आती हुई कम। बाकी राजकाज में कोई ज्यादा फर्क रहा नहीं इसलिए मोदी को लोगों ने हाथों-हाथ लिया। पर अब छह महीने बाद हालात बदल रहे हैं। उप चुनाव से यह तो साफ़ हो गया कि पिछड़े भी लौट गए और मुसलमान भी। बाकी महंगाई और लोक लुभावन वायदों को लेकर मोहभंग शुरू हो चुका है यह कोई अप्रत्याशित भी नहीं है। ऐसे में संघ परिवार की चिंता स्वभाविक है जो दीर्धकालीन रणनीति पर चलती रही है। उत्तर प्रदेश संघ के एजंडा पर सबसे ऊपर है। उत्तर प्रदेश में विधान सभा चुनाव के ठीक बाद इस पर काम शुरू हो गया था। वजह थे अखिलेश यादव। वे जिस अंदाज में आए थे उससे आम राजनीतिज्ञों का मानना था कि वे सत्ता की लम्बी पारी खेलेंगे। हालांकि इस पारी को छोटा करने का काम समाजवादियों ने ही शुरू किया पर संघ ने इसे और छोटा करने के लिए धार्मिक गोलबंदी का सहारा लिया। प्रयोग शुरू हुआ पश्चिम से। समाजवादी जब सत्ता में आते है तब दूर की सोचना बंद कर देते हैं, ऐसा कई बार महसूस हुआ और मुजफ्फरनगर के दंगों को लेकर यही नजर भी आया। इससे पहले मजहबी गोलबंदी की दर्जनों घटनाओं से सरकार ने कोई सबक नहीं लिया था। अखिलेश सरकार ने मुजफ्फरनगर दंगों को उतनी गंभीरता से नहीं लिया और सैफई महोत्सव के साथ ही सरकार विपक्ष और मीडिया के निशाने पर आ गई। यह सामान्य दंगा था भी नहीं, इसने पश्चिम में जाट और मुसलमानों को ही नहीं बांटा, बल्कि दलित और मुस्लिम को भी बांट दिया। इसका असर सिर्फ पश्चिम में ही नहीं पड़ा बल्कि पूरे देश पर पड़ा। संघ के तंत्र ने इसे सत्तारूढ़ दल के तुष्टिकरण के रूप में पेश किया और केंद्र के साथ उत्तर प्रदेश सरकार के खिलाफ वोट को एक हथियार के रूप में इस्तेमाल करने का आवाहन किया। अमित शाह ने तो खुलकर यह एलान किया था। मोदी एक तरफ विकास के जरिए अत्याधुनिक भारत के निर्माण का नारा दे रहे थे तो साथ ही दंगाइयों का बड़ा गिरोह मजहबी गोलबंदी में जुटा था। ठीक यही रणनीति अब फिर अपनाई जा रही है। मंदिर पर लाउड स्पीकर का मुद्दा सामने आ ही चुका है।
उत्तर प्रदेश के बहुत से जिलों में में धार्मिक यात्रा जारी है। मोदी को ऐसा प्रधानमंत्री बताया जा रहा है जो ‘उन लोगों’ को ठीक कर देगा और किसी के मुंह से आवाज भी नहीं निकलेगी। लव जिहाद भी इसी रणनीति का एक हथियार था, जो भोंथरा साबित हुआ तो अब ‘घर वापसी’ का हथियार सामने है। आगरा को छोड़िए, बड़े दिन पर यानी 25 दिसंबर को अलीगढ़ में जो इंतजाम हो रहा है वह समूचे विश्व में अपनी धर्म निरपेक्षता की थू-थू करा देगा। और संघ परिवार इसका ठीकरा भी अखिलेश सरकार पर फोड़ेगा, जैसा उसने आगरा में किया। आगरा पुलिस जाँच में जुटी है और सरकार की साख गिर रही है। समाजवादी नेता यह समझ ही नहीं पा रहे हैं, ऐसे संवेदनशील मुद्दों पर कितनी त्वरित कार्यवाही की जरूरत होती है। ठीक मुजफ्फरनगर की तरह अगर इस मामले में कोताही हुई तो फिर यह सरकार सांसत में फंसेगी और यही संघ का राजनैतिक एजेंडा भी है।
O- अंबरीश कुमार
साभार : http://www.hastakshep.com/intervention-hastakshep/ajkal-current-affairs/2014/12/11/%E0%A4%98%E0%A4%B0-%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%AA%E0%A4%B8%E0%A5%80-%E0%A4%A8%E0%A4%B9%E0%A5%80%E0%A4%82-%E0%A4%A6%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A5%8B%E0%A4%82-%E0%A4%95%E0%A5%80-%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%AA
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