देश में निवेश करने जो आएगा वह मुनाफे के लिए आएगा- प्रो. आनंद तेलतुंबड़े

आज वामपंथ भले कमजोर लग रहा हो, लेकिन यह इतिहास का अंत नहीं है। क्योंकि नवउदारवाद का जो यह दौर है, वह मुट्ठी भर लोगों के लिए ही है।
पटना। राजनीतिक विश्लेषक प्रो. आनंद तेलतुंबड़े कहा कि इस देश में कोई निवेश करने आएगा तो अपने मुनाफे के लिए आएगा, वह हमें दान देने नहीं आएगा। एफडीआई और निवेश के नाम पर लोगों को सिर्फ बुद्धू बनाया जा रहा है। आजकल सड़कों पर तो फुटपाथ भी नहीं बनते, फ्लाईओवर बनते हैं और उसी को विकास बताया जा रहा है।
एक प्रेस कांफ्रेंस को संबोधित करते हुए मोदी के विकास और अच्छे दिन के दावों पर बोलते हुए प्रो. तेलतुंबड़े ने कहा कि ये आने वाली पीढ़ियों पर बोझ लाद रहे हैं। हमें तो इस तरह का विकास चाहिए कि जनता में ताकत आए। उन्होंने सवाल किया कि शिक्षा और चिकित्सा दो बुनियादी मुद्दे हैं, इनके लिए सरकारों ने क्या किया है? चिकित्सा सेवा का सबसे ज्यादा निजीकरण हुआ है। प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा तक का बाजारीकरण हो गया। बंबई के सारे म्युनिसिपल स्कूल एनजीओ के हवाले किए जा रहे हैं। देश के देहाती इलाके गुणवत्तापूर्ण शिक्षा से पूरी तरह कट चुके हैं। उन्होंने यह भी सवाल किया कि चीन ने जैसा विकास किया है, क्या इंडिया वैसा कर पाएगा? वहां के शासकवर्ग और यहां के हरामखोरों में बहुत फर्क है।
दलित आंदोलन पर बोलते हुए प्रो. तेलतुमड़े ने कहा कि दलितों में भी जातियां हैं। जो बड़ी आबादी वाली जातियां हैं, दलित आंदोलन का उन्हें ही ज्यादा फायदा हुआ है। दलित नेताओं के भीतर भी सत्ता की प्रतिस्पर्धा बड़ी है, जिसके कारण वे कभी कांग्रेस और भाजपा में जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि भाजपा-आरएसएस की ओर से दलितों को एडॉप्ट करने की लगातार कोशिश की जा रही है। अंबेडकरवादी सिद्धांतों की बात करने वाले जो नेता कांग्रेस या भाजपा में गए हैं, दलाली के सिवा उनकी कोई दूसरी राजनीति नहीं है।
उत्तर प्रदेश की दलित राजनीति के बारे में बोलते हुए तेलतुंबड़े ने कहा कि यहां जो 18-19 प्रतिशत दलितों का वोट है, उसे ही ध्यान में रखकर कांशीराम ने अपनी राजनीति की थी। लेकिन बहुजन से सर्वजन करने पर दलितों में संदेह बढ़ा। उन्होंने कहा कि 1997 के बाद से आरक्षण की स्थिति बदली है, अब नौकरियां सात प्रतिशत घट गई हैं। शिक्षा के बाजारीकरण और निजीकरण ने जो सत्यानाश किया है, उसका नुकसान भी दलितों को हुआ है। आईआईटी के रिजर्वेशन की सीटें भर ही नहीं रही है। मुट्ठी भर दलित भले उपर पहुंच चुके हों। बड़ी आबादी को रिजर्वेशन से फायदा हो ही नहीं रहा है। इसके जरिए शासकवर्ग ने दलितों का अराजनीतिकरण किया है।
बिहार के राजनीतिक महागठबंधन पर बोलते हुए कहा कि ये सभी जेपी के आंदोलन से निकले हुए हैं, ये कोई सही विकल्प नहीं हो सकते। इसके जरिए व्यवस्था भावी परिवर्तन को थोड़ा लंबा खींच सकती है।आज वामपंथ भले कमजोर लग रहा हो, लेकिन यह इतिहास का अंत नहीं है। क्योंकि नवउदारवाद का जो यह दौर है, वह मुट्ठी भर लोगों के लिए ही है। दुनिया में सात अरब लोग हैं। बहुसंख्यक आबादी की जरूरतें पूरी नहीं होगी, तो संघर्ष जरूर तेज होगा।
साभार : http://www.hastakshep.com/hindi-news/nation/2014/12/07निवेश-मुनाफे-आनंद-तेलतुं
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