इस्लामी आतंकवाद का दोषी कौन? भाग-2
7 जनवरी 2015 को फ्रांस की व्यंग्य पत्रिका ‘शार्ली हेब्दो’ के
कार्यालय में घुस कर दो नकाबपोश आतंकवादियों ने अंधाधुंध पफायरिंग करते
हुए आठ पत्रकारों सहित 11 लोगों को मौत के घाट उतार दिया। खुद को इस्लाम का
ठेकेदार बताने वाले इन आतंकवादियों की शिकायत थी कि इस पत्रिका ने पैगंबर
हजरत मोहम्मद के आपत्तिजनक कार्टून प्रकाशित किए थे। इससे कुछ ही दिन पूर्व
पेशावर में तहरीक-ए-तालिबान नामक संगठन ने 150 स्कूली बच्चों का कत्ल कर
दिया… दुनिया के अनेक देशों में पिछले कुछ वर्षों के दौरान इस्लामी
आतंकवादियों द्वारा ऐसे अनेक हादसों को अंजाम दिया गया है और इस तरह की
घटनाओं में लगातार वृद्धि होती जा रही है… पत्रकार
आंद्रे वेतचेक ने इस लेख में उन कारणों की तलाश की है जिन्होंने इस्लामी आतंकवाद को पैदा किया और पाला पोसा…
1950
और 1960 के दशक के प्रारंभिक वर्षों में अमेरिका, आस्ट्रेलिया और आम तौर
पर पश्चिमी देश इस बात को लेकर बहुत परेशान थे कि आखिर क्या वजह है कि
राष्ट्रपति सुकर्णों की प्रगतिशील और साम्राज्यवाद विरोधी नीतियां जनता के
बीच इतनी लोकप्रिय हैं और क्यों इंडोनेशिया की कम्युनिस्ट पार्टी (पीकेआई)
जनता के बीच इतनी मजबूत है। वे यह जानने के लिए भी बहुत उत्सुक थे कि
इस्लाम का यह इंडोनेशियाई रूप कैसे इतना सचेत और समाजवादी हो गया है जो
घोषित तौर पर कम्युनिस्ट आदर्शों के साथ अपने को जोड़ सका है। उन्हीं दिनों
जेसूट जूप बिक जैसे कुख्यात कम्युनिस्ट विरोधी ईसाई विचारकों और
षडयंत्राकारियों ने इंडोनेशिया की राजनीति में घुसपैठ की। इन लोगों ने अपना
एक गुप्त संगठन बनाया और वैचारिक से लेकर अर्द्धसैनिक दस्ते तैयार किए जो
पश्चिमी देशों को इंडोनेशियाई सरकार का तख्ता पलटने में मदद पहुंचा सकें।
इसके नतीजे के तौर पर 1965 में सरकार का तख्ता पलटने की जो कार्रवाई हुई
उसमें तकरीबन 30 लाख लोग मारे गए और बेघरबार हुए। पश्चिमी देशों की
प्रयोगशाला में तैयार इस कम्युनिस्ट विरोधी और बौद्धिकता विरोधी प्रचार का
संचालन करने वाले जूप बिक तथा इसके साथियों ने अनेक मुस्लिम संगठनों को
कट्टरता की ओर प्रेरित किया और उनकी मदद से सत्ता पलट के तुरंत बाद बड़े
पैमाने पर राजधानी जकार्ता सहित देश के विभिन्न हिस्सों में वामपंथियों का
कत्लेआम किया। वे यह नहीं समझ सके कि इंडोनेशिया में कार्यरत पश्चिमी देशों
के ये कट्टर ईसाई समूह न केवल कम्युनिज्म का बल्कि इस्लाम का भी सफाया कर
रहे थे और वे उदारवादी तथा वामपंथी विचारधारा की ओर झुकाव रखने वाले इस्लाम
को भी अपना निशाना बना रहे थे।
1965 के इस सैनिक विद्रोह के बाद पश्चिमी
देशों की मदद से सत्ता में आए फासिस्ट तानाशाह जनरल सुहार्तों ने जूप बिक
को अपना प्रमुख सलाहकार नियुक्त किया। सुहार्तों ने बिक के एक शिष्य लिम
बायन की पर पूरा भरोसा किया और उसे एक प्रमुख ईसाई व्यवसायी के रूप में
अपने देश में स्थापित होने में मदद पहुंचायी।
इंडोनेशिया में मुसलमानों की सबसे ज्यादा आबादी है। सुहार्तों की तानाशाही
के दौरान मुलसमानों को हाशिए पर डाल दिया गया, ‘अविश्वसनीय’ राजनीतिक
पार्टियों पर प्रतिबंध् लगा दिया गया और देश की समूची राजनीति तथा
अर्थव्यवस्था पर पश्चिमीपरस्त अल्पसंख्यक ईसाइयों का प्रभुत्व स्थापित हो
गया जो आज तक बना हुआ है। यह अल्पसंख्यक समूह बहुत जटिल है और इसने
कम्युनिस्ट विरोधी योद्धाओं का एक जाल तैयार कर रखा है जिसमें बड़े-बड़े
औद्योगिक समूह, माफिया, मीडिया समूह और निजी धर्मिक स्कूलों सहित शिक्षण
संस्थाएं भी शामिल हैं। इनके साथ धर्मिक उपदेशकों का एक भ्रष्ट गिरोह भी
काम करता है।
इन सबका असर यह हुआ कि इंडोनेशिया में जिस
तरह का इस्लाम था वह एक खामोश बहुमत के रूप में पस्त होकर पड़ा रहा और
उसका सारा असर खत्म हो गया। अब इनकी खबरें तभी सुर्खियां बनती हैं जब इनके
बीच से हताश लड़ाकुओं का कोई समूह मुजाहिदीन बनकर किसी होटल या नाइट क्लब
में अथवा बाली और जकार्ता के किसी रेस्टोरेंट में धमाका करता है। क्या वे
आज भी सचमुच ऐसा कर रहे है? इंडोनेशिया के पूर्व राष्ट्रपति और प्रगतिशील
मुस्लिम धर्म गुरु अब्दुरर्हमान वाहिद ने, जिन्हें जबरन वहां के एलीट वर्ग
द्वारा सत्ता से हटा दिया गया, एक बार मुझे बताया कि ‘मुझे पता है कि
जकार्ता के मेरिएट होटल में किसने बम धमाका किया। यह धमाका इस्लामपरस्तों
ने नहीं किया था। यह धमाका इंडोनेशिया की खुफिया एजेंसियों ने किया था ताकि
वे पश्चिमी देशों को खुश कर सकें और अपनी मौजूदगी तथा मिल रहे पैसों को
तर्कसंगत ठहरा सकें।’
विख्यात मुस्लिम बुद्धिजीवी और मेरे मित्र
जियाउद्दीन सरदार ने लंदन में मुझसे कहा कि ‘मेरा यह मानना है कि पश्चिमी
साम्राज्यवादी देशों ने इन गुटों के साथ गठबंधन ही नहीं किया बल्कि इन्हें
पैदा भी किया। हमें यह समझने की जरूरत है कि उपनिवेशवाद ने मुस्लिम
राष्ट्रों और इस्लामिक संस्कृतियों को महज नष्ट ही नहीं किया बल्कि इसने
ज्ञान और मेध को, विचार और रचनात्मकता को मुस्लिम संस्कृति से क्रमशः
समाप्त करने का काम किया। उपनिवेशवादी कुचक्र की शुरुआत इस्लाम के ज्ञान को
अपने ढंग से इस्तेमाल करने के साथ हुई जिसे ‘यूरोपियन पुनर्जागरण’ और
‘प्रबोध्न’ का आधर बनाया गया और इसकी समाप्ति मुस्लिम समाजों और इतिहास से
भी इस ज्ञान तथा विद्वता का पूरी तरह सपफाया करने के साथ हुआ। इस काम के
लिए इसने ज्ञान से संबंध्ति संस्थानों को नष्ट कर, देशज ज्ञान के विभिन्न
रूपों को प्रतिबंध्ति कर तथा स्थानीय विचारकों और विद्वानों की हत्या करके
संपन्न किया। इसके साथ ही इसने इतिहास का पुनर्लेखन इस तरह किया जैसे यह
पश्चिमी सभ्यता का इतिहास हो जिसमें अन्य सभ्यताओं के सभी छोटे-मोटे
इतिहासों को समाहित कर लिया गया।’
द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद के वर्षों में
जो उम्मीदें पैदा हुई थीं उस समय से लेकर मौजूदा दौर के अवसाद भरे दिनों को
देखें तो एक बहुत लंबी और दर्दनाक यात्रा पूरी करनी पड़ी है। मुस्लिम जगत
आज आहत, प्रताडि़त और विभ्रम की स्थिति में है जिसने उसे लगभग रक्षात्मक
हालत में पहुंचा दिया है। बाहरी लोगों द्वारा इसे गलत समझा जा रहा है और
प्रायः खुद उनके उन लोगों द्वारा भी जो पश्चिमी और ईसाई विश्व दृष्टि पर
भरोसा करने के लिए प्रायः मजबूर होते हैं।
किसी
जमाने में सहिष्णुता, ज्ञान, लोगों की खुशहाली के सरोकार जैसे गुणों की
वजह से इस्लामिक संस्कृति के अंदर जो आकर्षण था उसे इन पश्चिमी देशों ने
पूरी तरह समाप्त कर दिया। बस केवल एक चीज बची रह गयी जिसे हम धर्म कहते
हैं। आज अधिकांश मुस्लिम देशों में या तो तानाशाहों का शासन है या सैनिक
शासन अथवा किसी भ्रष्ट गिरोह का शासन है। ये सभी पश्चिमी देशों और उनके
हितों के साथ घनिष्ठ रूप से जुड़े हुए हैं। इन पश्चिमी हमलावरों और
उपनिवेशवादियों ने जिस तरह दक्षिणी और मध्य अमेरिका तथा अफ्रीका के भी
साम्राज्यों और महान राष्ट्रों के साथ किया उसी तरह इन्होंने महान मुस्लिम
संस्कृति को भी समाप्त कर दिया। इस संस्कृति की जगह पर इन्होंने लालच,
भ्रष्टाचार और बबर्रता को जन्म दे दिया। ऐसा लगता है कि हर वह चीज जो गैर
ईसाई बुनियाद से भिन्न हो उसे साम्राज्यवादी देश धूल में मिला देना चाहते
हैं। ऐसी हालत में वही संस्कृतियां आज भी किसी तरह अपने को जिंदा रख सकी
हैं जो सबसे बड़ी थीं या बहुत कठोर थीं।
हम आज भी देख रहे हैं कि अगर कोई मुस्लिम
देश अपनी बुनियादी अच्छाई की ओर लौटना चाहता है या अपने समाजवादी अथवा
समाजवाद की ओर उन्मुख रास्ते पर बढ़ना चाहता है तो इसे बुरी तरह सताया जाता
है और अंत में नष्ट ही कर दिया जाता है। यह हमने अतीत में ईरान, मिस्र,
इंडोनेशिया आदि में और हाल के दिनों में इराक, लीबिया या सीरिया में देखा
है। यहां जनता की आकांक्षाओं को बड़ी बेरहमी के साथ कुचल दिया गया और
जनतांत्रिक तरीके से चुनी गयी इनकी सरकारों का तख्ता पलट दिया गया।
अनेक दशकों से हम देख रहे हैं कि
फिलिस्तीन को इसकी आजादी से और साथ ही बुनियादी मानव अध्किारों की इसकी ललक
से वंचित कर दिया गया है। इजरायल और साम्राज्यवादी देश दोनों ने मिलकर
इसके आत्मनिर्णय के अधिकार को धूल में मिला दिया है। फिलिस्तीनी जनता को एक
गंदी बस्ती में कैद कर दिया गया है और इसे लगातार अपमान झेलना पड़ता है।
इसे लगातार हत्याओं का सामना करना पड़ता है। मिस्र से लेकर बहरीन तक ‘अरब
बसंत’ की जो धूम मची हुई थी उसे लगभग हर जगह पटरी से उतार दिया गया और फिर
पुरानी सत्ताएं और सैनिक सरकारें बदस्तूर वापस सत्तारूढ़ हो गयीं। अफ्रीकी
जनता की ही तरह मुसलमान भी इस बात की कीमत अदा कर रहे हैं कि वे क्यों ऐसे
देश में पैदा हुए जो प्राकृतिक संसाध्नों के मामले में अत्यंत समृद्ध है।
उन्हें इस बात के लिए भी प्रताडि़त किया जा रहा है कि वे चीन के साथ क्यों
संबंध बना रहे हैं जबकि चीन उन देशों में से है जिसका इतिहास महानतम सभ्यता
का इतिहास है और जिसने पश्चिमी देशों की संस्कृतियों को अपनी चमक के आगे
धुंधला कर दिया है।
ईसाइयत ने सारी दुनिया में लूट मचाई और
बर्बरता का परिचय दिया। इस्लाम ने अपने सलादीन जैसे महान सुल्तानों के साथ
हमलावरों का मुकाबला किया और अलेप्पो तथा दमिश्क, काहिरा और येरुसलम जैसे
महान शहरों की हमलावरों से हिपफाजत की। यह युद्ध और लूट-खसोट की बजाय महान
सभ्यता के निर्माण की कोशिश में ज्यादा लगा हुआ था।
आज पश्चिमी देशों में शायद ही किसी को पता हो कि सलादीन कौन था या उसने मुस्लिम जगत में कितने महान वैज्ञानिक, कलात्मक
या सामाजिक उपलब्ध्यिां हासिल कीं। लेकिन हर व्यक्ति को आईएसआईएस के
कुकृत्यों की अच्छी जानकारी है। बेशक लोग आईएसआईएस को एक उग्र इस्लामिक
समूह के रूप में जानते हैं-उन्हें यह नहीं पता है कि मध्यपूर्व की देशों
में अस्थिरता पैदा करने के लिए पश्चिमी देशों ने इसे अपने प्रमुख उपकरण के
रूप में ईजाद किया है।
फ्रांस की पत्रिका शार्ली हेब्दो के पत्रकारों की मौत पर
(जो निश्चय ही जघन्यतम अपराध है) समूचा फ्रांस आज शोक में डूबा हुआ है और
एक बार फिर इस्लाम को एक बर्बर और जुझारू धर्म के रूप में चित्रित किया जा
रहा है लेकिन इस पर चर्चा नहीं हो रही है कि किस तरह ईसाइयत के कट्टरपंथी
सिद्धांतों ने मुस्लिम जगत की धर्मनिरपेक्ष और प्रगतिशील सरकारों का तख्ता
पलटा, उनका गला घोंट दिया गया और समूची मुस्लिम आबादी को इन पागलों के
हवाले कर दिया गया।
पिछले पांच दशकों के दौरान तकरीबन एक
करोड़ मुसलमान महज इसलिए मार डाले गए क्योंकि उन्होंने साम्राज्यवाद के
स्वार्थों की पूर्ति नहीं की या वे उनकी मनमर्जी से काम करने के लिए तैयार
नहीं हुए। इंडोनेशिया, इराक, अल्जीरिया, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, ईरान,
यमन, सीरिया, लेबनान, मिस्र, माली, सोमालिया, बहरीन तथा ऐसे अन्य कई देशों
के मुसलमानों की हालत देखने से इसी बात की पुष्टि होती है कि
साम्राज्यवादियों के बताए रास्ते पर न चलने का खामियाजा उन्हें किस तरह
भुगतना पड़ा। इन पश्चिमी देशों ने इन इस्लामिक देशों में अरबों डॉलर खर्च
किए, उन्हें हथियारबंद किया, उन्हें उन्नत सैनिक प्रशिक्षण दिया और फिर
खुला छोड़ दिया। सऊदी अरब और कतर जैसे देशों में जहां आतंकवाद को पूरी
शिद्दत के साथ पाल-पोस कर बड़ा किया जा रहा है ये दोनों देश आज पश्चिमी
देशों के सबसे चहेते देशों में से हैं और इन्होंने जिस तरह आतंक का अन्य
मुस्लिम देशों में निर्यात किया है उसके लिए इन्हें कभी सजा नहीं दी गयी।
हिजबुल्ला जैसा महान सामाजिक मुस्लिम आंदोलन जो आज आईएसआईएस का मुकाबला
करने के लिए पूरी ताकत के साथ डटा हुआ है और जो इस्राइली हमलावरों के साथ
लेबनान के साथ खड़ा है, उसे इन पश्चिमी देशों ने ‘आतंकवादियों की सूची’ में डाल रखा है।
अगर इस तथ्य पर कोई ध्यान दे तो बहुत सारी बातें खुद ही स्पष्ट हो जाती
हैं। मध्य-पूर्व के परिदृश्य को देखें तो साफ पता चलता है कि पश्चिमी देश
इस बात के लिए आमादा हैं कि कैसे मुस्लिम देशों और मुस्लिम संस्कृति का
सपफाया कर दिया जाय। जहां तक मुस्लिम धर्म का सवाल है साम्राज्यवादी देशों
को धर्म का वही स्वरूप स्वीकार्य है जिसमें पूंजीवाद के अत्यंत चरम रूप और
पश्चिम के प्रभुत्वकारी हैसियत को स्वीकृति मिलती हो। इस्लाम का जो दूसरा
रूप वे स्वीकार करते हैं उसमें पश्चिम तथा खाड़ी देशों के उनके सहयोगियों
द्वारा निर्मित इस्लाम का माॅडल होना चाहिए जिसका मकसद ही प्रगतिशीलता और
सामाजिक न्याय के खिलाफ खड़ा होना हो।
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