जिन्दा बने रहिये क्योंकि डॉ. लोहिया ने इंतज़ार करने के लिए मना किया है
इमरान इदरीस
बीसवीं सदी के दो महान महामानव वैज्ञानिक आइन्स्टीन और राष्ट्रपिता महात्मा
गाँधी जी ने एक व्यक्ति का उल्लेख महापुरुष में किया है वो है — डॉ राम मनोहर लोहिया।
असाधारण
लोहिया 12 अक्तूबर 1967 को एक साधारण से ऑपरेशन के बाद इस संसार से चले
गए। अंतिम समय अपने इर्द-गिर्द डॉक्टरों की फ़ौज देखकर उनकी चिंता भारत के
आम नागरिक को मिलने वाली स्वास्थ सेवाओं को लेकर हुई थी।
कौन थे लोहिया। ना कोई परिवार, ना कोई घर,
ना कोई बैंक या डाकखाने में खाता। पास में अगर कुछ था तो वो था एक चमड़े का
बक्सा उसमें कुछ किताबें, कुर्ते और धोतियां।
1932
में मात्र 22 वर्ष की आयु में जर्मनी के विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में
डॉक्टरेट की उपाधि मिली। अनेक भाषाओं के जानकार जर्मन, अंग्रेजी, बंगला,
मराठी और हिंदी पर उनका बराबर नियंत्रण।
1963-67 मात्र चार सालों में संसद के सदस्य, जिन्होंने आम भारतीय के, गरीबी
की बात करके संसद को हिला दिया। 16 आना और 4 आना की एतिहासिक बहस यू-ट्यूब
पर है।
आखिर लोहिया को पढ़ने वाला
लोहिया क्यों बन जाता है। डॉ. साहब ने कहा था लोग मेरी बात सुनेंगे जरूर,
पर मेरे जाने के बाद। उन्होंने सही कहा था क्योंकि आज उनके जाने के 47 साल
बाद भी नौजवान उनको पढ़ता है और आकर कहता है लोहिया जी मैं समाजवाद की उस
परिकल्पना के साथ हूँ और आपके रास्तों पर चलने के लिए तैयार हूँ।
दरअसल लोहिया विचारधारा है और उस पर चलने वाले प्रहरी। जो भी इस विचारधारा पर चला है, ईश्वर ने उसे रास्ता और यश अपने आप दिया है।
आज
डॉ. साहब आपको मेरा सलाम। श्रद्धांजलि शब्द नहीं बोलूँगा क्योंकि डॉ. साहब
जैसे लोग अनंतकालीन जीवन जीते हैं, लोगों के अन्दर आत्म-विश्वास बनकर
जिन्दा रहते हैं।
जिन्दा बने रहिये क्योंकि डॉ साहब ने इंतज़ार करने के लिए मना किया है। …-
आभार : http://www.hastakshep.com/intervention-hastakshep/memoirs-reminiscences/2014/10/12/a-tribute-to-dr-ram-manohar-lohia
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