व्यक्ति
स्त्री के नाभि के नीचे दुनिया की सारी खुशी और बेचैन मन को शांत तो कर
लेता है या करने की फिराक में रहता है। लेकिन, वहीं नाभि के एक बित्ते ऊपर
दिल से न तो कभी तादात्म्य स्थापित कर पाता है और न ही उस दिल का मर्म ही
समझ पाता है। क्या हम आज भी इस मानसिकता से मुक्त हो पाए हैं ? शायद नहीं।
वह पहले की अपेक्षा आज पुरुष मानसिकता की ज्यादा गुलाम है।
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