Saturday, 17 August 2013

नकली आजादी का जश्न ----- अरविन्द कुमार उपाध्याय

नकली आजादी का जश्न 


आजादी की जश्न में पूरा संपन्न समाज शराब और अफीम की जश्न में डूबा हुआ है। पता नहीं कितने लाखों-करोड़ों की सीसी के सील तोड़े गए। लाखों रूपए घूमने और सैर-सपाटा के लिए खर्च किए गए। बाजार में नई वस्तुओं की आमद बढ़ गई। सरकारी भवनों पर तिरंगा फहराया गया। राष्ट्रगान और महापुरुषों की शौर्य गाथा का पुनर्पाठ किया गया। फिर अंत में यही सवाल रह गया कि यह आजादी किसके लिए? क्या आजादी के मायने यही है? जहाँ स्वार्थ लिप्सा, छद्म राजनीति, भूख, गरीबी, हत्या, बलात्कार, वेश्यावृत्ति, साप्रदायिकता आदि पापाचार हो वहाँ आजादी का क्या मतलब? आज भी हमारे समाज में एक ऐसा तबका है जिसे ये तो पता है कि देश 1947 में स्वतंत्र हुआ लेकिन किसके लिए? और किस लिए? शायद उनके पास इसका कोई वाजिब उत्तर नहीं है। हम ऐसे दो राहें मोड़ पर खड़े हैं जहाँ एक तरफ स्वार्थ की राजनीति है तो दूसरी तरफ बाजार का वितंडतावाद। एक ने समाज को लूट-खसोट, हत्या, बलात्कार जैसे चीजों को दिया और दूसरे ने मुखौटा। हमारी जो वास्तविकता है उसे हम स्वीकार नहीं कर रहे हैं बल्कि नकली आधुनिकता ओढ़े हुए हैं।................ । शेष फिर कभी

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