Friday, 28 March 2014

महान क्रांतिकारी भगत सिंह का एक दुर्लभ और महत्वपूर्ण पत्र
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(२३ मार्च,१९९५ को दैनिक हिन्दुस्तान में प्रकाशित श्री ओ.पी. बनमाली का आलेख )
भगत सिंह का क्रांतिकारी स्वरुप तो हमेशा ही जनता के सामने आता रहा है ,लेकिन ध्यान देने की बात यह भी है कि क्या उस किशोर क्रांतिकारी में मानवीय गुण थे या नहीं ? भगत सिंह के प्रेम संम्बंध पर अटकलें प्पूर्व में लगाई जाती रही हैं , लेकिन नारी के प्रेयसी-रूप संबंधी उनके दृष्टिकोण पर अब तक कम ही चर्चा हुई है ! कहा जाता है कि भगत सिंह ने असेम्बली पर बम फेंकने का निर्णय भी किसी नारी के कारण ही लिया था ! एक हम उम्र किशोरी की मुस्कुराहट का उसी अंदाज़ में जवाब देकर उन्होंने यह जरुर साबित किया था कि मानवीय संवेदना के धरातल पर वे किसी से कम नहीं थे ! सुखदेव के द्वारा विरोध किये जाने पर उन्होंने सुखदेव को एक दुर्लभ पत्र लिखा था , जिसमें नारी के प्रेयसी-रूप के प्रति उनके दृष्टिकोण का पता चलता है ! नीचे वह पत्र संलग्न है :---
प्रिय भाई ,
जैसे ही यह पत्र तुम्हें मिलेगा , मैं जा चुका हूँगा --- दूर एक मंजिल की ओर ! मैं तुम्हें विश्वास दिलाना चाहता हूँ कि मैं आज बहुत खुश हूँ ! हमेशा से ज्यादा ! मैं यात्रा के लिए तैयार हूँ ! अनेक-अनेक मधुर स्मृतियों के होते और अपने जीवन की सब खुशियों के होते भी एक बात मेरे मन में चुभती रही थी कि मेरे भाई, मेरे अपने भाई ने मुझे गलत समझा और मेरे ऊपर बहुत ही गम्भीर आरोप लगाया...कमजोरी! आज मैं पूरी तरह संतुष्ट हूँ ! पहले से कहीं अधिक !
आज मैं महसूस करता हूँ कि वह बात कुछ भी नहीं थी , एक गलतफहमी थी . एक गलत अंदाज़ था ! मेरे खुले व्यवहार को मेरा बातूनीपन समझा गया और मेरी आत्मस्वीकृति को मेरी कमजोरी ! परन्तु अब मैं महसूस करता हूँ कि कोई गलतफहमी नहीं, मैं कमजोर नहीं, अपनों में स किसी से भी कमजोर नहीं !
भाई, मैं साफ़ दिल से विदा हूँगा ! क्या तुम भी साफ़ होगे ! यह तुम्हारी बड़ी दयालुता होगी, लेकिन ख्याल रखना कि तुम्हें जल्दबाजी में कोई कदम नहीं उठाना चाहिए !गम्भीरता और शान्ति स तुम्हें काम को आगे बढाना है ! जल्दबाजी में मौका पा लेने का प्रयत्न न करना ! जनता के प्रति तुम्हारा कुछ कर्त्तव्य है ! उसे निभाते हुए काम को निरंतर सावधानी से करते रहना !
ख़ुशी के इस वातावरण में मैं कह सकता हूँ कि जिस प्रश्न पर हमारी बहस है , मैं उसमें अपना पक्ष लिए बिना नहीं रह सकता ! मैं पूरे जोर से कहता हूँ कि मैं आकांक्षाओं और आशाओं से भरपूर हूँ और जीवन की आनंदमय रंगीनियों से ओतप्रोत हूँ, पर आवश्यकता के समय पर सब कुछ कुर्बान कर सकता हूँ और यही वास्तविक बलिदान है ! ये चीज़ें कभी मनुष्य के रास्ते में रुकावट नहीं बन सकतीं, बशर्ते कि वह मनुष्य हो ! निकट भविष्य में ही तुम्हें इसका प्रत्यक्ष प्रमाण मिल जाएगा !
किसी व्यक्ति के चरित्र के बारे में बात करते हुए यह बात सोचनी होगी कि क्या प्यार कभी किसी मनुष्य के लिए सहायक सिद्ध हुआ है ! मैं आज इस प्रश्न का उत्तर देता हूँ ------ हाँ, यह मेजिनी था ! तुमने अवश्य ही पढ़ा होगा कि अपनी पहली विद्रोही असफलता, मन को कुचल डालनेवाली हार , मरे हुए साथियों की याद वह बर्दाश्त नहीं कर सकता था ! वह पागल हो जाता या आत्मह्त्या कर लेता, लेकिन अपनी प्रेमिका के एक पत्र से वह, यही नहीं कि किसी एक से मजबूत हो गया, बल्कि सबसे अधिक मजबूत हो गया !
जहां तक प्यार के नैतिक स्तर का सम्बन्ध है , मैं यह कह सकता हूँ कि यह अपने आप में कुछ नही है, सिवाय एक आवेश के , लेकिन यह पाशविक वृत्ति नहीं . एक मानवीय , अत्यंत मधुर भावना है ! प्यार अपने में कभी भी पाशविक वृत्ति नहीं है ! प्यार तो हमेशा मनुष्य के चरित्र को ऊंचा उठाता है , यह कभी भी उसे नीचा नहीं करता , बशर्ते कि प्यार प्यार हो ! तुम कभी भी इन लडकियों को वैसी पागल नहीं कह सकते, जैसे कि फिल्मों में हम प्रेमियों को देखते हैं ! वे सदा पाशविक वृत्तियों के हाथों खेलती हैं! सच्चा प्यार कभी भी गढा नहीं जा सकता ! वह अपने ही मार्ग से आता है ! कोई नहीं कह सकता कब !
हाँ, मैं यह कह सकता हूँ कि एक युवक, एक युवती आपस में प्यार कर सकते हैं और वे अपने प्यार के सहारे अपने आवेगों से ऊपर उठ सकते हैं, अपनी पवित्रता बनाए रख सकते हैं ! मैं यहाँ एक बात साफ़ कर देना चाहता हूँ कि जब मैंने कहा था कि प्यार इनसानी कमजोरी है, तो यह एक साधारण आदमी के लिए नहीं कहा था , जिस स्तर पर कि आम आदमी होते हैं ! वह एक अत्यंत आदर्श स्थिति है, जहाँ मनुष्य प्यार-घृणा आदि के आवेशों पर काबू पा लेगा, जब मनुष्य अपने कार्यों का आधार आत्मा के निर्देश को बना लेगा , लेकिन आधुनिक समय में यह कोई बुराई नहीं है, बल्कि मनुष्य के लिए अच्छा और लाभदायक है ! मैंने एक आदमी के एक आदमी से प्यार की निंदा की है, पर वह भी एक आदर्श स्तर पर ! इसके होते हुए भी मनुष्य में प्यार की गहरी भावना होनी चाहिए , जिसे कि वह एक ही आदमी में सीमित न कर दे बल्कि विश्वमय रखे !
मैं सोचता हूँ , मैंने अपनी स्थिति अब स्पष्ट कर दी है ! एक बात मैं तुम्हें बताना चाहता हूँ कि क्रांतिकारी विचारों के होते हुए हम नैतिकता के सम्बन्ध में आर्यसमाजी ढंग की कट्टर धारणा नहीं अपना सकते ! हम बढ़-चढ़ कर बात कर सकते हैं और इसे आसानी से छुपा सकते हैं , पर असल जिंदगी में हम झट थर-थर काम्पना शुरू कर देते हैं !
मैं तुमसे यह कहूँगा कि तुम यह छोड़ दो ! क्या मैं अपने मन में बिना किसी गलत अंदाज़ के गहरी नम्रता के साथ निवेदन कर सकता हौं कि तुम में जो अति आदर्शवाद है , उसे जरा कम कर दो ! और उनकी तरफ से तीखे न रहो , जो पीछे रहेंगे और मेरे जैसी बीमारी का शिकार होंगे, उनकी भर्त्सना कर उनके दुखों, तकलीफों को न बढाना ! उन्हें तुम्हारी सहानुभूति की आवश्यकता है !
क्या मैं यह आशा कर सकता हूँ कि किसी ख़ास व्यक्ति से द्वेष रखे बिना तुम उनके साथ हमदर्दी करोगे, जिन्हें इसकी सबसे अधिक जरूरत है ! लेकिन तुम तब तक इन बातों को नहीं समझ सकते , जब तक कि तुम स्वयम उस चीज़ का शिकार न बनो ! मैं यह सब क्यों लिख रहा हूँ ! मैं बिलकुल स्पष्ट होना चाहता था ! मैंने अपना दिल साफ़ कर दिया है !
तुमरी हर सफलता और प्रसन्न जीवन की कामना सहित !
-----तुम्हारा भाई,
भगत सिंह



Sunday, 23 March 2014

भगत सिंह के जन्मदिवस पर उनके नाम प्रो. लाल बहादुर वर्मा का एक ख़त


प्यारे दुलारे भगत,


ख़त में एक दूरी तो है पर यह ख़त हम तुम्हारे मार्फ़त खुद को लिख रहे हैं- तुम से जुड़कर तुम्हे अपने से जोड़ रहे हैं ..

तुमे हम क्या कहकर पुकारे यह तय करना बाकी है , क्योकि तुमसे जन्म का रिश्ता तो है नहीं कर्म का रिश्ता है और तुम्हे जो करना था कर गए , हमें जो करना है वह कितना कर पाते है यह इसे भी तय होगा की हम तुम्हे कैसे याद करते हैं .बहरहाल इतना तो तय ही है की तुम्हें ''शहीदे आज़म'' कहना छोड़ दिया है . इसमें जो दूरी , जो परायापन था वह पास आने से रोकता रहा है . तुम्हें अनूठा ,असाधारण ,निराला बनाकर हम बचते रहे की तुम जैसा और कोई हो ही नहीं सकता . आखिर क्यों नहीं हो सकता? आखिर तुमने ऐसा क्या किया है जो दूसरा नहीं कर सकता ? तुमने देश से प्रेम किया , समाज को बदलना चाहा . घर परिवार को समाज का अंग मान समाज को आज़ाद और बेहतर बनाना चाहा , आखिर तभी तो घर परिवार आज़ाद और बेहतर हो सकते थे ..तुमने अनुभव और अध्ययन से जाना और लोगों को बताया कि शोषण और जुल्म करने वालों में देशी-विदेशी का अंतर बेमानी होता है , तुमने कितनी आसानी से समझा दिया कि तुम नास्तिक क्यों हो गए थे ? तुमने कुर्बानी दी पर कुर्बानी देने वालों की तो कभी कमी नहीं रही है .आज भी कुर्बानी देने वाले हैं . हाँ तुम्हारी चेतना का विकास और व्यापक पहुँच असाधारण थी,पर कोई करने आमादा हो जाय तो ये सब मुश्किल भले ही हो पर असंभव तो नहीं होना चाहिए!

पर हाँ , तुम्हारी तरह लगातार अपने साथ आगे बढ़ते जाने का जज्बा और कोशिश तो चाहिए ही . 

तुमने जब अपने वक्त को और उसी से जोड़कर अपने को जाना पहचाना . तो हिन्दुस्तान पर बर्तानिया के हुक्मरानों की हुकूमत बेलौस और बेलगाम हो चुकी थी . आज अमरीकी निजाम उसी रास्ते पर है , वह ज्यादा ताकतवर, ज्यादा बेहया और ज्यादा बेगैरत है . उसे हर हाल में अपनी जरूरतें पूरी करनी हैं .पर दूसरी तरफ दुनिया तो पहले से ज्यादा जागी हुई है . खुद अमेरिका में ही लाखों लोग अपने ही देश में अमन और तहजीबो-तमददुन के दुश्मनों के खिलाफ बगावत पर आमादा हैं . यह सच है की दुनिया को भरमाने और तरह तरह के लालचों के जाल में फसाकर न घर न घाट का कुता बना देने के ढेरों औजार और चकाचौध पैदा करने वाली फितरतें हैं हुक्मरानों के पास . लोगों को तरह तरह से बाट कर रखने के उपाय हैं पर आम लोग भी तो पहले की तरह भेड़ बकरी नहीं रहे .आज ठीक है कि ज्यादातर लोग सम्मान पूर्वक रोटी दाल भी नहीं खा रहे और पढ़े लिखे लोग रोटी पर तरह तरह के मक्खन और चीज चुपड़ने में ही मरे जा रहे हैं पर यह भी तो सच है कि ऐसे लोगों की तादाद बढ़ रही है जो जानने समझने लगे है कि जो कुछ उनका है वह उन्हें क्यों नहीं मिल पा रहा है ? आज आदमी के हक़ छीने जा रहे हैं यहाँ तक की हवा पानी के हक़ भी .. जो कुदरत ने हर किसी को दे रखा है . पर हकों की पहचान भी तो बढ़ रही है . आज इन्साफ की उम्मीद नहीं रही . पर इन्साफ के लिए खुदा नहीं ,इंसान को जिम्मेदार ठहराने की तरकीबें बढ़ रही हैं . इंसान धरती सागर ही नहीं अन्तरिक्ष को भी रौंद रहा है पर उसकी इंसानियत खोती जा रही है . पर साथ ही बढ़ रहा है हैवानियत से शर्म का अहसास , बढ़ रहे हैं भारी पैमाने पर लालच बेहयाई और बर्बरता ..पर क्या गुस्सा नहीं बढ़ रहा?



तो भगत ! हम तुम्हारे अनुयायी नहीं ,तुमसा बनना चाहते हैं बल्कि तुमसे आगे जाना चाहते हैं .क्योकि तुमसा बनने से भी काम नहीं चलेगा . तुम रूमानियत से उबरते जा रहे थे ,पर क्या पूरी तरह ? आज के हालात में भी रूमानियत जरूरी है पर दाल में नमक भर ...


दुखी मत होना यह जानकर कि अब तो सफल होने में जुटे लोगों के लिए तुम प्रासंगिक नहीं रहे . आज़ादी के फ़ौरन बाद शैलेन्द्र ने लिखा था कि ''भगत सिंह इस बार न लेना काया भारतवासी की ,देश भक्ति के लिए आज भी सजा मिलेगी फांसी की'' .
मैं जानता हूँ, तुम्हें इतिहास से कितना प्रेम था .इत्मीनान रखना कि अनगिनत लोग तुमसे यानी अपने इतिहास से प्रेम करते हैं . वे इतिहासबोध से लैस हो रहे हैं . तुम्हारी मदद से,इतिहास की मदद से वे दुनिया बदलने पर आमादा हैं .हम पुराने हथियारों पर लगी जंग छुडा उन्हें और धारदार बनायेंगे और लगातार नए नए हथियार भी ढूढते जायेंगे .दोस्त दुश्मन की पहचान तेज करेंगे , हम समझने की कोशिश कर रहे हैं कि तुम आज होते तो क्या क्या करते ? हमें तुम्हारे बाद पैदा होने का फायदा भी तो मिल सकता है . एक भगत सिंह से काम नहीं चलने वाला , हमसब को 'तुम' भी बनना होगा.



यह सब लिख पाना भी आसान काम नहीं था , बरसों लग गए यह ख़त लिखने में , जो कुछ लिखा है उसे कर पाने में तो और भी ना जाने कितना वक्त लगे ....!


तुम्हारा , लाल बहादुर 
इतिहासबोध

http://jantakapaksh.blogspot.in से साभार